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________________ 4. निघण्टु कोष (396 श्लो.) 5. देशीनाममाला (3500 श्लो.) छन्द- छन्दोनुशासन सविवरण (3000 श्लो.) अलंकार- काव्यानुशासन सविवरण (6800 श्लो.) काव्य- 1. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र महाकाव्य (32000 श्लो.) परिशिष्ट पर्व (3500 श्लो.), 2. व्याश्रय काव्य-प्राकृत (1500 श्लो.), संस्कृत (2828 श्लो.) / स्तोत्र- 1. वीतराग स्तोत्र (188 श्लो.), 2. अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका (32 श्लो.), 3. अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका, 4. महादेव स्तोत्र (श्लो. 44) न्याय- 1. प्रमाणमीमांसा (2500 श्लो.), 2. वेदांकुश (1000 श्लो.) योग- योगशास्त्र सविवरण (12750 श्लो.) आचार्य हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा एवं असाधारण व्यक्तित्व के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने जो अपने अभिमत प्रकट किये हैं, वे आचार्य की प्रतिभा को समझने में अत्यन्त सहायक हैं, अतः उन्हें उद्धृत कर रहा हूँ: ___ कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र, जिन्हें पश्चिमी विद्वान् आदरपूर्वक ज्ञान का सागर Ocean of Knowledge कहते हैं, संस्कृत जगत् में विशिष्ट स्थान रखते हैं। संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य के मूर्धन्य प्रणेता आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व जितना गौरवपूर्ण है उतना ही प्रेरक भी है। कलिकालसर्वज्ञ उपाधि से उनके विशाल एवं व्यापक व्यक्तित्व के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है। न केवल अध्यात्म एवं धर्म के क्षेत्र में अपितु साहित्य एवं भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में भी उनकी प्रतिभाषा का प्रकाश समान रूप से विस्तीर्ण हुआ। इनमें एक साथ ही वैयाकरण, आलंकारिक, दार्शनिक, साहित्यकार, इतिहासकार, पुराणकार, कोषकार, छन्दोनुशासक, धर्मोपदेशक और महान् युगकवि का अन्यतम समन्वय हुआ है। आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व सार्वकालिक, सार्वदेशिक एवं विश्वजनीन रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश अभी तक उनके व्यक्तित्व को सम्प्रदाय-विशेष तक ही सीमित रखा गया। सम्प्रदायरूपी मेघों से आच्छन्न होने के कारण इन आचार्य सूर्य का आलोक सम्प्रदायेतर जन साधारण तक पहुँच न सका। स्वयं जैन सम्प्रदाय में भी साधारण बौद्धिक स्तर के लोग आचार्य हेमचन्द्र के विषय में अनभिज्ञ हैं। किन्तु आचार्य हेमचन्द्र का कार्य तो सम्प्रदायातीत और सर्वजनहिताय रहा है और, इस दृष्टि से वे अन्य सामान्य जन, आचार्यों एवं कवियों से कहीं बहुत अधिक सम्मान एवं श्रद्धा के अधिकारी हैं। संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का और श्री हर्ष के दरबार में जो स्थान बाणभट्ट का है, प्रायः वही स्थान २१वीं शताब्दी में चौलुक्य वंशोद्भव सुप्रसिद्ध गुर्जर नरेन्द्र शिरोमणि सिद्धराज जयसिंह के इतिहास में श्री हेमचन्द्राचार्य का है। प्रो. पारीख इन्हें Intellectual Giant कहा है। वे सचमुच लक्षणा साहित्य तथा तर्क अर्थात् व्याकरण, साहित्य तथा दर्शन के असाधारण आचार्य थे। वे सुवर्णाभ कान्ति के तेजस्वी एवं आकर्षक व्यक्तित्व को धारण करने वाले महापुरुष थे। वे तपोनिष्ठ थे, शास्त्रवेत्ता थे तथा कवि थे। व्यसनों को छुड़ाने में वे प्रभावकारी सुधारक भी थे। उन्होंने जयसिंह और कुमारपाल की सहायता से मद्यनिषेध सफल किया 46 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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