________________ जहि दसकोडिहि द्रविड-वालिखिल्लहि नरनाह हो। पाविय-सिद्धि-समिद्धि खवियनियपावपवाह हो। दसरहसुय-सिरिराम भरहकय सिवसुहसंगमु। सो सित्तंज सतित्थ जयउ तित्थह सव्वत्तम। निणु गुरुमाहुप्पु जसु अइमुत्तयकेवलि कहिओ। आरूह वि जित्थु नारयरिसिहि पत्तु मुक्ख दुक्खिहि रहिओ॥३॥ सिरिविज्जाहरचक्कवट्टि नमि-विनमि-मुणिंदिहिं। विहिकोडसि सहु मुणिवराह नयसुरवर विंदिहिं। जह पत्तओ सुरसुक्खु भवदुक्खनिवारणु। सो सेत्तुंज सुतित्थ नमह सासयसुहकारj। गुणवियलु पसु वि अणसणु करवि जहि हरिसिय सुरयणमहिउ। तित्थाणुभावमित्तिण सुहइ भुंजइ सुरकामिणिसहिउ॥४॥ घरपरियणसुहनेह नियउ निठुरभंजेविणु। खउकंटयकक्करकरालकाणणपविसेविणु। भीसणवग्यवराहभमिरतक्करजगणेविणु। गुरुगिरिवरसरसरिरउउरत्तु वि लंघेविणु। आरुहि वि जाव सित्तुंजि न दिट्ठउ रिसहजिणिंदमुह। सिरिपुंडरीउगणहरसहिउ ताव कि लब्भइ जीवसुह॥५॥ काइ मूढ पविसहि.अयाणु जि व सलहु महानलि। काइ मधु जिम्ब भमिय चित्तु बुड्डहिं गंगाजलि। काइ अकजि वि मूढ धरि वि सिरि गुग्गुलुजालहि। काइ इयर तिथिहि भमंतु अप्पहु संतावहि। कहिउ मुणिहि तित्थह पवरु तहि सित्तुंजि चडे वि पुण। किर काहि न पुजहि रिसहजिणु जिम्व छिंदहिं जम्मण जरमरण॥६॥ काइ तेण वि हविण न जेणउ वयरिउ सुपत्तह। काइ तेण जीविइण जुगउ दालिद्द-दुहत्तह। काइ तेण जुव्वणिण जु करि बोलिउ सकलं कह। / काइ तेण सज्जणिण हुयउ जु न विहु र पडंतह। किरि काइ मणुयजम्मिण न जहि वंदिउ सुरनरवरमहिउ। सित्तुंजसिहरिसंढिउ रिसह पुंडरीयगणिहरसहिउ॥७॥ अहह कवडजक्खपभाउ जहि फुरइ असंभवु। कटरि करइ जो पणयजणह निच्छउ अपुणब्भवु। अररि कलिहि अजवि अखंड जसु कित्ति सिलीसइ। वपुरि गुरयपुत्रिहि पि जो भवि इहि दीसइ।। जहि अणेयकोडहि सहिय सिद्ध मुणीसर सुरमहिउ। सो नमहु तित्थ सित्तुंज पर विहिय हेमसूरिहि कहिउ॥८॥ [अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ, भाग-२] 000 35 लेख संग्रह