________________ धारु धमई रस अंजण जोवइ, जूइ रमइ इम दविणु न होवइ / कुवसणि इक्कु वि सुउ न गंमीजइ, तिय आगति चहुं भागिहिं कीजइ / / 34 / / पहिलउ भागु निधिहिं संवारइ वीजउ पुणु वचसा उवधारइ / तीजउ धम्म भोगु निरदोसु चउथइ दुपय चउप्पय पोसु।। 35 / / तृतीय भाषा (घत्ता) निसुणि धम्मिय निसुणि धम्मिय, कूड तुल माण। क्रय कूडो परिहर हु कूड लेख तहं साखि कूडिय दुत्थिय दुहिय सवासणिय मित्त दोह न हु वातरुवडिया। देवदव्वु जो गुरुदविणु, भक्खइ भवु अगणंतु। विणु सम्मत्तिण सो भमइ, इम संसारु अणंतु / / 36 / / जिम आहारहं तणीय सुद्धि, मुनि चारितु लीणउं। हाटहं हूतउ घरि पहूतु जउ भोजन वारहं। पूजा वीजी वार करइ, वांसिउ नवि वारहं / / 37 / / दीण गिलाणहं पाहुणहं, संभाल करावइ / सइ हत्थिहिं सूधउ, अहारु मुणिवर विहरावइ / / उसह वेसह वत्थ पत्त, वसही सयणासण / अवरु वि जं इहं तित्थ, तं देइ सुवासणु / / 38 / / जइ तहिं गइ न हुंति साहु, तउ दिवस आलावइ / मनि भावइ आवइ सुपात्तु, तउ भल्लउ होवइ / / कवणु कियउ पच्चक्खाणु, आजु मनि इम संभारइ। वइठउ वाइं सचित्त चाई, आहारु अहारइ / / 39 / / करि भोयणु निद्दह विहूणु खणु इकु वि समत्तउ। पाछिलइ पहरि पुण वि, पोसालह गम्मइ / / पढइ गुणइं वाचइ सुणेइ, पुच्छेइ पढावइ / अह जु वियालीय करणहारु, सो णिय घरि आवइ / / 40 / / दिवसहं अट्ठम भाग सो सि जीमेइ सुजाणू। पाछिलए दो घडिय दिवसि चरिमं पचखाणू।। संघहं तीजी करिवि, सामाइकु लीजइ। तउ देवसियं पडिकमेवि, सब्भाउ करिजइ / / 41 / / रत्तिहिं वीतइ पढम पहरि, नवकारु भणेविणु। अरिहय सिद्धि सुसाहु धम्म सरणई पइ सेविणु।। 42 / / चतुर्थ भाषा (घत्ता) अंति निद्दह अंति निद्दह चित्ति चिंतेइ। सेतुंजि उज्जिलि चडिवि जिणहं, पूय कइंयहं कराविसु। लेख संग्रह 345