________________ ऋषियों का उल्लेख, ध्यान केन्द्रों के लिए बादरायण, ऋषि कूप, भार्गव कूप, अर्बुद आदि का , उल्लेख, गुरुकुल निवासी, आर्यधर्म, सयोगी केवली को जीवन-मुक्त-चारित्र योगी, महाविदेह क्षेत्र / को महादेव क्षेत्र और औपनिषदिक विज्ञानघन, विरजस्क, वितमस्क, साष्टांग आदि शताधिक शब्दों के प्रयोग इसके प्रमाण में रखे जा सकते हैं। 4. अध्याय एक में सांवत्सरिक प्रतिक्रमण हेतु पंच दिवसीय पर्युषण पर्व आराधना करने का उल्लेख है। जबकि पर्युषणा पर्व आठ दिवस का माना गया है। सम्भव है इस आचार्य की निगम परम्परा में पर्युषण पांच दिन का ही होता होगा। 5. मौलिक चिंतन न होते हुए भी उपनिषद् शैली में ग्रथित 'आर्षभी विद्या' मौलिक ग्रन्थ है। अद्यावधि इसकी एक मात्र प्रति ही उपलब्ध है जो खंडित और अशुद्ध भी है। अतः इसके खंडित पाठों की पूर्ति करु एवं संशोधन कर इसका प्रकाशन अवश्य किया जाना चाहिए। प्रति परिचय यह ग्रन्थ अद्यावधि अमुद्रित है। इसकी एक मात्र दुर्लभ हस्तलिखित प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के क्षेत्रीय कार्यालय, जयपुर के श्री पूज्य श्री जिनधरणेन्द्रसूरि संग्रह में परिग्रहणांक 7972 पर सुरक्षित है। साईज 31.7412.7 से.मी. है। पत्र सं० 10, पंक्ति 17, अक्षर 60 है। लेखन अशुद्ध है। किनारे खंडित होने से पाठ खंडित हो गये हैं। प्रान्त पुष्पिका में लेखन संवत् इस प्रकार दिया . है:- 'श्रीपत्तने सं० 1554 वर्षे / / शुभमस्तु / / ' _[अनुसंधान अंक-५०-२] 340 लेख संग्रह