________________ खंडित होने पर नेमिनाथ की प्रतिमा उसके स्थान पर विराजमान ही हो। परिकर प्राचीन है और मूलनायक मूर्ति सं० 1677 में तपागच्छीय विजयदेवसूरि प्रतिष्ठित है। मंदिर के साथ ही उपाश्रय है। मंदिर और उपाश्रय जीर्ण-शीर्ण ही नहीं, खण्डहर बनता जा रहा है। झाड़-झंखाड़ उग चुके हैं। कांकरिया परिवार (चाहे वहाँ रहते हों, जोधपुर या कहीं भी रहते हों) को चाहिए कि अपनी पूर्वजों द्वारा निर्मापित मंदिर का जीर्णोद्धार अवश्य करावें, नामावशेष न होने दें। 4. महावीर स्वामी का मंदिर- यह नवनिर्मापित उपाश्रय के ठीक पीछे ही है। मूर्ति पर सं० 1677 में मेड़ता में तपागच्छीय श्री विजयदेवसूरि प्रतिष्ठापित का लेख है। भंडार में खंडित मूर्ति पर 1497 का लेख है। मंदिर के नीचे उपाश्रय में श्रीपूज्य जी गद्दी के चबूतरे का खंडित प्रस्तर शिलालेख अन्य स्थान से लाकर यहाँ रखा हुआ है, जिस पर निम्नांकित महत्वपूर्ण लेख उत्कीर्ण है। घिस जाने से कई अक्षर अस्पष्ट भी हो गये हैं। लेख संस्कृत गद्य और पद्य में अंकित है। '....सुरत्राण साम्राज्ये श्री.... श्री बृहत्खरतरगच्छे श्रीमत् जिनदेवसूरि... श्रीजिनसिंह सूरीणामुपदेशेन संघेश.... रायमल-भारमलौ रायमल आर्या रंगादे पुत्री देव... साधर्मिकवात्सल्यपर्वपारणा-पुस्तक लेखनदान... प्रमुख पुण्यप्रसव-सावित्री सं० जीवा सं० जयवन्त...राज भीमराज प्रमुख भ्रातृ सौहार्द धारिणी स्व.... पुण्यप्रभाविका वीरा नाम्नी पक्षशाला द्वार.....अकारयत् अपवरक बृहत्शालाविधाने चतुर्थांसं प्राददाच्च सा चतुर्विध संघेन सेव्यमानं चिरं नन्द्यात् // वर्षे व्योमार्णवेन्दूज्वलकिरणचिते [ 1640 ] फाल्गुने वल्गुमासि। श्रीमत् श्रीजैन.... खरतरगणप ( ? ) सपदेशैस्त्वदीयैः। सप्तक्षेत्र्यां..... धनमधिकतमा... प्त सद्धर्मसेवा। वृद्ध श्रद्धालु दात्री सुतविमलमते रायमल्लस्य पुत्री। वीरा नाम्म्याहती.... पि सघनतरैर्द्वार-शालां विशालां व्यय मप्यन्यां पार्श्वशाला विपुलकृतेऽकारयद् भव्यभावात्। तुर्यांशं पुण्यपूर्णं द्रविण-प्रददौ तूच्चशाला विधाने। नन्द्याद् धर्माश्रयोर्यं जननयनमुदे.... व विजलीव॥ श्रीजिनदत्तयतीन्द्राः॥ श्रीमज्जिनकुशलसूर..... कुर्वन्तु.........।" * लेख का सारांश- वि० सं० 1640 में खरतरगच्छ (की आद्यपक्षीय शाखा) के आचार्य जिनदेवसूरि के पट्टधर श्री जिनसिंहसूरि के उपदेश से संघपति रायमल्ल की भार्या रंगादे की वीरा नाम की पुत्री थी, जो देवगुरु की भक्ति करने वाली, साधर्मिकों का वात्सल्य/सहयोग करने वाली, पर्वो पर पारणा कराने वाली, शास्त्रों का लेखन करवाने वाली, सप्त क्षेत्रों में धन का सदुपयोग करने वाली, अर्हद्धर्म सेवा आदि प्रमुख पुण्य कार्यों की जनयित्री थी और.... भीमराज आदि भाइयों के सौहार्दपूर्ण प्रेम को धारण करने वाली थी। उस पुण्य प्रभाविका वीरा नाम की श्राविका ने शाला (उपाश्रय, पौषधशाला) का निर्माण करवाया और विशाल शाला के निर्माण हेतु अपने धन का चतुर्थांश (चौथा हिस्सा) प्रदान किया था। वीरा निर्मापित यह धर्मस्थान जनसमूह के नेत्रों को प्रमुदित और कल्याण करने वाला बने / दादा जिनदत्तसूरि और जिनकुशलसूरि संघ का मंगल करें। प्रस्तुत लेख में संकेतित वीरा श्राविका के सद्धर्म कार्यात्मक विशेषण मनन योग्य एवं अनुकरणीय MO लेख संग्रह 333