________________ 2. हमीरदेवी और 3. टबकू। तथा जिसके पुत्र का नाम जीवराज था - वह अपने समस्त परिवार सहित अर्बुदांचल (आबू) महातीर्थ की यात्रा करने आया था। उसने अपनी भुजा द्वारा उपार्जित द्रव्य से, हृदय की प्रसन्नता के साथ इस विष्णुदेव के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया जो देव-गुरु के प्रसाद से चन्द्र-सूर्य पर्यन्त .विद्यमान रहे। इस लेख से साह आसा का वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है: म. विजपाल मं. मंडलिक म. रणसिंह सा. खेटा सा. सामन्त सा. चाचिग सा.सायर (पत्नी पल्ही) सा. पद्मा सा. रत्ना सा. आसा पाचा पूया मल्हाई रंगाई लखीई (पुत्री) (पुत्री) (पुत्री) (3 पलियाँ - माघी, हमीरदे, टबकू) जीवराज इस लेख से निम्नलिखित हकीकत प्रकाश में आती है:(१) 'खरतरपक्षीय' एवं 'देवगुरुप्रसादात्' जैसे जैन पारिभाषित शब्द का प्रयोग होने के कारण सिद्ध है कि साह आसा जैन वंशीय श्वे. खरतरगच्छ संघ का उपासक था। (2) श्रीमालज्ञाति में सेथालगोत्र उस समय विद्यमान था। आज इस गोत्र के वंशजों का तो क्या, इस गोत्र का नामावशेष तक नहीं रहा। .. (3) विजपाल, मंडलिक और रणसिंह के आगे मंत्री विशेषण है तो परवर्ती परंपरा में नहीं है। अतः संभव है कि ये तीनों किसी राज्य के मन्त्री रहे हों। योगिनीपुर जिसका वर्तमान नाम दिल्ली है, जो भारत की राजधानी है। दिल्ली को प्रायः पूर्ववर्ती जैन ग्रन्थकारों ने योगिनीपुर के नाम से ही उल्लेख किया है। (5) अहमदाबाद पूर्व में राजनगर के नाम से ख्यात था, जिसका अहमदशाह ने अपने नाम से अहमदाबाद रखा था। वह व्यापार की दृष्टि से इस समय तक काफी प्रसिद्ध हो चुका था। (6) संभवतः क्षत्रपवंशीय कोई सामन्त या राजा विशेष उस समय अवश्य ही अहमदाबाद में रहा हो और साह आसा उसके कृपाभाजन रहे हों। अन्यथा 'क्षत्रपकुलप्रसिद्धेन' शब्द की संगति नहीं बैठती। (7) जैन श्रावक ने इस विष्णुदेव के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया। (8) यही विष्णुदेव मन्दिर आज द्वारकानाथ के नाम से प्रचलित है। लेख संग्रह 297