________________ .. जहाँ केसरियानाथ (कालियाबाबा) और राणकपुर जैसे विश्वप्रसिद्ध तीर्थ स्थान हों, जहाँ श्रीजगच्चन्द्रसूरि जैसे आचार्यों को तपाविरुद मिला हो अर्थात् जहाँ से तपागच्छ प्रारम्भ हुआ हो, जहाँ खरतरगच्छ की पिप्पलक शाखा के जिनवर्द्धनसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनसागरसूरि का चारों ओर बोल'बाला हो, जहाँ महोपाध्याय मेघविजयजी का प्रमुख विचरण स्थल रहा हो, जहाँ नौलखा गोत्रीय रामदेव और राष्ट्रभक्त महाराणा प्रताप के अनन्य साथी दानवीर भामाशाह जैसे जिस राज्य में वित्त मन्त्री रहे हों। जहाँ अधिकारी वर्ग में जैन मन्त्रियों में देवीचन्द मेहता से लेकर भगवतसिंह मेहता रहे हों, जहाँ बलवन्तसिंह मेहता जैसे स्वतन्त्रता सेनानी रहे हों और पुरातत्वाचार्य जिनविजयजी जैसे इस भूमि की उपज हों उस मेवाड़ प्रदेश की जैसी प्रसिद्धि जैन समाज में होनी चाहिए वैसी नहीं रही। लीजिए अब पठन के साथ भावपूर्वक तीर्थवन्दना कीजिए: राजगच्छीय धर्मघोषसूरिवंशीय श्रीहरिकलशयतिविरचिता मेदपाटदेश-तीर्थमाला // र्द.॥ श्रीजिनेन्द्रेभ्यो नमः॥ चतुर्विंशतिं तीर्थनाथान् प्रणम्य, स्वयं दृष्टतीर्थस्मृतेर्जातहर्षात् / विचिन्त्य स्वचित्ते महापुण्यलाभं, स्तुवे तीर्थमालां विशालां रसालाम् // 1 // सश्रीदैरसुरैः सेव्यः' सवासवसुरैनरैः।। स मे यच्छतु नैर्मल्यं संयमाराधने जिनाः // 2 // रैः से व्यः ___ ध रा मा य सं वा स व सु ल्यं म नै तु श्रीवामेय इति नामगर्भ स्वस्तिकः आदौ सम्प्रति राजकीर्तननथो( !मथो) नागह्रदेशार्चितं / स्वप्नात् श्रीनवखण्डनामविदितं श्रीपार्श्वनाथं जिनम्॥ लेख संग्रह 287