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________________ 8. इसमें पद्राटक (बड़ौदा/बाँसवाड़ा) ग्राम में श्रेष्ठतम महावीर स्वामी का मन्दिर है, चौवीस मण्डपिकाओं - से युक्त स्वर्ण वर्णी पार्श्वनाथ विराजमान हैं। दूसरा मन्दिर भी पार्श्वनाथ का है। उसमें भी विराजमान समस्त जिनेश्वरों को कवि नमस्कार करता है। 9. इस पद्य में मत्स्येन्द्रपुर (वर्तमान में मचीन्द) में विराजमान पार्श्वनाथ, शान्तिनाथ आदि जिनवरों को नमस्कार करता है और श्यामवर्णी पार्श्वनाथ को नमस्कार करता है। 10. इस पद्य में पहाड़ों के मध्य में कपिलवाटक (सम्भवतः केलवाड़ा) को कवि ने राजधानी बताया है। सम्भव है राज्यों के उथल-पुथल में इसको राजधानी बनाया गया हो अथवा कुम्भलगढ़ को समृद्ध करने के पूर्व इसको राजधानी के रूप में माना हो। इस कपिलवाटक में उत्तुङ्ग तोरणों से युक्त पाँच जिनालय हैं, जिनमें नेमिनाथ, पार्श्वनाथ आदि मुख्य हैं। उन सबको कवि ने प्रणाम किया है। 11. वैराट अपरनाम वर्द्धनपुर (बदनोर) ऊचे पहाड़ियों के मध्य में बसा हुआ है। यहाँ तेरह जिनमन्दिर तोरणों से शोभायमान हैं और उनमें आदिनाथादि प्रमुख मूलनायक हैं। पर्वतों के मध्य में ही खदूरोतु ( ) में पार्श्वनाथ का जिनमन्दिर हैं। 12. १२वें पद्य में माण्डिल (माण्डल) ग्राम का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि यहाँ पर जिनेश्वरों ___के पाँच मन्दिर हैं, जिसमें नेमिनाथादि मूलनायक प्रमुख हैं। शान्तिनाथ भगवान की मूर्ति आठ हाथ ऊँची है। 13. तेरहवें पद्य में प्रज्ञाराजी मण्डल (माण्डलगढ़) के दुर्ग पर ऋषभदेव और चन्द्रप्रभ के मन्दिर हैं। - तथा विन्ध्यपल्ली (बिजौलिया) में शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी के मुख्य मन्दिर हैं। 14.. इस पद्य में चित्रकूट (चित्तौड़) दुर्ग का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि जहाँ झरने बह रहे हैं, . उच्च कीर्तिस्तम्भ है, जलकुण्ड है, नदी बहती है, पुल भी बँधा हुआ है। उस चित्तौड़ में सोमचिन्तामणि .. के नाम से प्रसिद्ध चिन्तामणि पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर है। साथ ही ऋषभदेव आदि के 22 ... मन्दिर और हैं जिनको मैं नमस्कार करता हूँ। 15. पद्य 15 में करहेटक (करेडा) में विस्तीर्ण स्थान पर तीन मण्डप वाला चौवीस भगवानों के .. देहरियों से युक्त मन्दिर है। साथ ही 72 जिनालयों से युक्त जिनेन्द्रों को मैं नमस्कार करता हूँ। 16. १६वें पद्य में कवि स्थानों का नाम देता हुआ - सालेर (सालेरा), जहाजपुर मण्डल, चित्रकूट दुर्ग, वारीपुर ( ), थाणक (थाणा), चङ्गिका (चंगेड़ी), विराटदुर्ग (बदनोर), वणहेडक (बनेड़ा), घासक (घासा) आदि स्थानों में स्थापित जिनवरों को नमस्कार करता है। 17. इसमें दर्भीकसी (डभोक) ग्राम में विराजमान देवेन्द्रों से पूजित युगादि जिनेश को कवि प्रणाम करता है। 18. इस पद्य में अणीहृद ( ) में विराजमान अधिष्ठायक पार्श्वदेव के द्वारा सेवित पार्श्वनाथ को और नीलवर्णी हरिप्रपूजित नेमिनाथ को नमस्कार करता है। 19. यापुर (जावर) में आठ जिनमन्दिर हैं। वे तोरण, ध्वजा आदि से सुशोभित हैं। वर्द्धमान स्वामी __प्रतिमा पित्तल परिकरकी है। श्रीचन्द्रप्रभ, वासुपूज्य, ऋषभदेव और शान्तिनाथ आदि मूलनायकों ___ को जो कि सात जिनमन्दिरों में विराजमान हैं उनको नमस्कार करता है। 'लेख संग्रह 285
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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