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________________ बुद्धाणं-अरिहंत-चेइयाणं आदि, उत्तराध्ययन सूत्र-टीका, उपदेशमाला वृत्ति सहित, ओघनियुक्तिसटीक, औपपातिक सूत्र, चतुःशरण प्रकीर्णक, चैत्यवन्दनभाष्य-अवचूरि-टीका, जीवाभिगम सूत्र-. सटीक, ज्ञाताधर्म कथा सूत्र-टीका, कल्पसूत्र संदेह विषौषधी टीका-टीकाएं, नन्दीसूत्र, निशीथ सूत्र भाष्य-चूर्णि-टीका, पंचवस्तु टीका, पंचासक टीका, पिण्डनियुक्ति, प्रज्ञापना सूत्र, प्रतिष्ठा कल्पउमास्वाति, प्रतिष्ठा कल्प-पादलिप्तांचार्य, प्रतिष्ठा कल्प-श्यामाचार्य, प्रवचन सारोद्धार-सटीक, बृहद् कल्प सूत्र-भाष्य-नियुक्ति-टीका सहित, भगवती सूत्र-सटीक, मरण समाधि महानिशीथ सूत्र, योगशास्त्र, राजप्रश्नीय सूत्र, ललित विस्तरा(चैत्यवन्दन सूत्र टीका), व्यवहार भाष्य-चूर्णि-टीका, षडावश्यक लघु वृत्ति, सूत्र कृतांगसूत्र, स्थानांग सूत्र सटीक। इन दोनों निर्णायकों ने अपने निर्णय में श्री झवेरसागरजी के मत को परिपुष्ट किया है और वादी श्री विजयराजेन्द्रसूरि के मत का निराकरण किया है। वृद्धजनों के मुख से मैने यह सुना है कि उक्त निर्णय के पश्चात् श्री विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराज ने उक्त निर्णय को पूर्ण मान्यता और अपने मन्तव्य को बदलने का प्रयत्न किया। इसी समय माल्हव और गोढ़वाढ़ के प्रमुख श्रेष्ठियों ने आचार्यश्री से निवेदन किया कि महाराज ये क्या कर रहे हो? हमने आपके मन्तव्य को स्वीकार कर अपने समाज से विरोध लेकर अलग हुए हैं ऐसी स्थिति में आप यदि मत बदलोगे तो हम उनके सामने कैसे सिर ऊँचा रखेंगे? ऐसा भक्त श्रावकों के मुख से सुनकर अपने मन्तव्य पर ही दृढ़ रहे और अपने विचारों को ही परिपुष्ट किया। तत्वं तु केवली गम्यं प्रति परिचय ___ इस प्रति की साईज 11.2420.3 से.मी. है। पत्र 71, पंक्ति 10 तथा प्रति पंक्ति अक्षर लगभग 38 हैं। लेखन प्रशस्ति निम्न प्रकार है: / / ग्रंथमान 1551, इतिनिर्णयप्रभाकराभिध:संदर्भः।। समाप्तोय:।। श्रीरस्तुकल्याणं / / श्रीमत्बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिसाखाया:।। श्रीमत्१०८ श्री पं प्र। मुनिश्रीमद्देवविनयजी:।। तच्चरणारविंदमधुकरइवः।। जवेरचंद्रेणलिपिकतंदक्षिणप्रांत पूर्णाभिधनग्रात्पार्श्वभागेग्रामीणतलेग्रामध्ये लिपीकतंचतुर्मासचक्रेः।। संवत् 1939 का मीती आश्विनशुक्ल नवम्यांतिथौ शुक्रवासरेः।। पुण्यपवित्रंभवतु / / श्रेयभवतुः।। श्री।। [अनुसंधान अंक-४८] 282 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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