________________ इणपरि भगतई वन्निउ ए मा० ए श्रीय धरणविहार भणतां गुणतां संपजई ए मा० सासइ सुक्ख संभार सुणिसुदरि।। इतिश्रीधरणविहारचतुर्मुखस्तवः।। समाप्त। शुभं भवतु॥ सं०लाखाभा० लीलादे पुत्री श्रा० चांपूपठनार्थं / / लिखतं पूज्याराध्य पं० समयसुन्दरगणिशिष्य पं० चरणसुंदरगणि शिष्य हंसविशालगणिना।। [अनुसंधान अंक-४५] 000 268 लेख संग्रह