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________________ घमघमई ए घूघरमाल लंब पताका लह लह इं ए नाचतीए जाणे रंगि संघपति कीरति गहगई ए।। 15 / / / / वस्तु।। चारु चउमुख चारु चउ मुख रिसह जिणनाह संघपति धरणिंद करेविअ, सुगुरु पासि पइइट्ठ सारिअ तीरथ सवि अवतार तिणि, देवछंद दिप्पंत कारिअ त्रिहुँ भूमे * भासुर सिहर कोरणी ए सुविशाल दंडकलश सोवनमइ दीसई अतिहिं झमाल / / 16 / / / / ठवणी।। चउमुख चिहुं पखि चाहीइ तु भमरुलीभर मह तणु विचार पुतली सोहई ए नवनवी तु भ० जाणे रंभाकार थंभे तोरण धोरणी तु भ० कोरणी दीसइं सार मूलमंडपि जव आविआ तु भ० मनमोहइ अपार / / 17 / / त्रिन्नि चउवीसी जिणह तणी तु भ० मंडप तणइ वितानि तिहू अण सोभा संकली तु भ० जाणे इंद्रविमाण पूतली छइतालीस करई तु भ० नितु नाटक रंगरोल जाणे अपछरदेव तु भ० आविय करइं टकोल / / 18 / / पंच वंन सोहामणी तु भ० गूह ली तलगटि चंग तिहां बइसई कुलकामिनी तु भ० गाई जिश गुणरंगि नितु नितु देस विदेस तणा तु भ० आवई संघ अपार , स्नात्र महोत्सव नितु करइं तु भ० महाधज दीजई सार।। 19 / / मेघमंडप ऊमाह डउ तु भ० करिवा लोअणसार त्रिहुं भूमे त्रिभुवन तणा तु भ० जाणे इंहि अवतार कोरणी वरणनइं नहीं तु भ० पूतली नानाकार ' नाटक लकुटी रसरमई तु भ० भवियण त्रिन्हइ वार।। 20 / / भेरि भूगल नीसाण तणु तु भ० गाजई. गुहिरु नाद गुणगाइं गंधव घणा तु भ० बइ सी मधुरइ सादि त्रिणि त्रिणि मण्डप चिहुं दिसई तु भ० चुमुखि इणि परिवार देवलोक बारई किसुं तु भ० अवतरिया खाकई वार।। 21 / / |भाषा।। उत्तर दिसइं दोइ दीपतां ए माल्हं तडि अष्टापद प्रासाद बीजु कल्याण त्रय तणु ए मा० चुमुख सिंलिइ वाद नालिमंडप मंडावीउ ए मा० सह सकूट गिरिराज प्रतिमां सह सवि पूजतां ए मा० सीझई भवियण काज।। 22 / / 266 लेखसंग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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