________________ प्रतिभा सम्पन्न ग्रन्थकार महोपाध्याय मेघविजय" श्री मरुधरकेसरी मुनिश्री मिश्रीमलजी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ एवं महोपाध्याय मेघविजय प्रणीत नवीन दुर्लभ ग्रन्थ धर्मलाभ शास्त्र लेख अनुसंधान अंक 30 में देखें। सिद्धिविजयजी की केवल चार ही लघु कृतियाँ प्राप्त हैं। दो नेमिनाथ भास जो प्रस्तुत हैं और दो भास श्री विजयदेवसूरि से सम्बन्धित हैं। ये दोनों भास विजयदेवसूरि के परिचय से साथ प्रकाशित किए जाएंगे। इस कवि की अन्य कोई कृतियाँ मुझे प्राप्त नहीं हुई हैं। दोनों भास प्रस्तुत हैं: (1) नेमिनाथ-भास परणकुं नेमि मनाया तब पसुअ पुकार सुणाया। रथ फेरि चले यदुराया छबीले नेमिजिणिंद न आया॥ 1 // नीके नयन कठोर भराया, छबीले नेमि जिणिंद न आया॥ आंचली। उनयु जलधर जब आया धनश्याम घटा झड़ लाया // इसउ मास आसाढ सोहाया छबीले नेमिजिणिंद न आया // 2 // सावण की लागी छाया भाद्रवडई नेह जगाया। आसूडइ आंसु भराया, छबीले नेमिजिणिंद न आया // 3 // नेमिसरनि वरकाया काहे इतनी करी माया। विरहानल मोहि लगाया छबीले नेमिजिणिंद न आया॥४॥ मोहि चित्त चमक्कउ लाया नेमीसर छोडि सधाया। अब काह करुं मोरि माया छबीले नेमिजिणिंद न आया॥५॥ जिणइं नेम जिणेसर पाया धनसो जन जगमां आया। इम बिलवति राजुल राया छबीले नेमिजिणिंद न आया // 6 // भव संतति दोरक पाया राजुल पहु केवल पाया। मुनि सिद्धिविजय गुण गाया छबीले नेमिजिणिंद न आया // 7 // इति श्री नेमिनाथ भास समाप्त (2) नेमिनाथ-भास . सुणउ मेरी बहिनी काह करीजइ रे, नेमि चलउ हइंकु दिन लीजइ रे॥ सुणउ मेरी बहिनी // 1 // उन दरिसन विन लोचन खीजई रे, युं सरजल विन सफरी थीजइं रे॥ सुणउ मेरी बहिनी // 2 // लेख संग्रह 239