________________ प्रवर्तिनी लब्धिप्रभा गणिनी-कृत सामला पार्श्वनाथ विज्ञप्ति श्री सामला देव करूँ जुहार, वामा तणा नन्दन विश्वसार / धरणिंद सेवइ तुम्ह सर्व वार, त्रैलोक्यनी भाव विभंजणहार // 1 // तुं नामि नासइ भय रोग मारि, सवे टलई आपइद तिवारि / तुं नामि विलसइ धन भोग योग, संपति संतान सवे संयोग॥ 2 // करुणा तणा सायर नाह हेव, करूँ तुम्हारी नित पाय सेव। माता पिता बंधव मित्त देव, मनि माहरइ तुंहजि एक एव॥ 3 // हव भेटि लाधी मई तुझ केरी, तुं वीनति सांभलि सामि मोरी। एया पिया फेडि न राग रोस, सदा करावई बहु पाप सोस॥ 4 // संसारना भाव सवे अपार, मूंक्या परीखी मई लक्ष वार / तिणइं तुझ टाली मझ चित्तमांहि, वसइ न को निश्चई विश्वमांहि // 5 // पण मज्झ जा किउं मन एक ठामि, रहइ नहीं ते किम पास कामि। तई सर्व सीझइ ए खोडि फेडि, मन धर्म नइ मारगि मज्झ जोडि॥६॥ छंइ आपण जीवतणा संदेह, मनि माहरइ भव्य अभव्य एह / ए भाजि मूंआ रति वीतराग, ताहरउ जिही अडइ छइ भत्तिराग // 7 // तूं नामि नवपल्लव देह थाई, तूं नामि मूं हर्ष हीइ न माइं। तुं नामि गाजउं मझ ए सुहाईं, तुह दंसणिइं आरति मज्झ जाई॥८॥ तई सामलई तिहुअण चित्त मोहियां, धर्मोपदेशइं जल लक्ष वोहियां / ए खंति मूं थाइ वार वार, तुं जामलि बइसारि न एक वार // 9 // तुं भाविया वंछिय कप्परुक्ख, भडवाय भागा पर देव लक्ख / मंइ इं नहीं ते बल अलपक्षं, ताहरां सवे थाई दास मुख्य // 10 // ताहरु जि हुं सेवक सामि जाल, दइ आप सरीखी पदवी विसाल। बहु गर्भवासादिक दुक्ख वारि, संसारना सायर थउ ऊतारि॥ 11 // इम विनवउं मेल्ही मान माय, गुण तूं अनंता हूँ मूर्ख ताय / मांगउ नहीं अवर न किंपि हेव, देयो सदा मूं नीय पाय सेव // 12 // __[१८वीं शती के लिखित एक पत्र पर से] [श्री जैन धर्म प्रकाश, भावनगर, वर्ष-७०, अंक-१] 000 लेख संग्रह 171 12.