________________ लेकर भद्रबाहु स्वामी तथा स्थूलभद्र तक की पट्ट- ३७-सिद्धप्राभृत-वृत्ति सहित इसकी मूल परम्परा का उल्लेख किया गया है / अन्त में बारह प्रतियाँ खम्भात व जैसलमेर के भण्डारों में प्राप्य आरों, विविध धर्मोपदेश और सिद्धों का स्वरूप हैं / इसका संस्करण-आत्मानन्द सभा, भावनगर विस्तृत रूप से निरूपित है / प्रस्तुत प्रकीर्णक से भी प्रकाशित है / इसमें 120 गाथाएँ हैं / इसमें महावीर जैन विद्यालय से मूल एवं कल्याण- शीर्षकानुसार ही सिद्धों का वर्णन किया गया है / विजयगणि, जालौर से हिन्दी अनुवाद के साथ ३८-अङ्गचूलिका-इसमें 800 ग्रन्थाङ्क प्रकाशित है। (श्लोक) हैं / यह यशोभद्र की रचना है / इसका ___३४-अङ्गविद्या-भारतीय वाङ्मय में यह उल्लेख ठाणाङ्ग, व्यवहार, नन्दीसूत्र व अपने ही तरह का ग्रन्थ है / इसमें कुल 9000 ग्र० पाक्षिकसूत्र में प्राप्त होता है, पर यह अभी तक एवं 60 अध्ययन हैं / इसमें मनुष्य की शारीरिक अमुद्रित है / इसकी प्रतियां कई ग्रन्थ भण्डारों में क्रिया व चेष्टा के आधार पर फलादेश दिये गये भी उपलब्ध हैं / इसमें साधु द्वारा आगम स्वाध्याय हैं / यह मानस व अङ्गशास्त्र निमित्त की विधि-नियम और उसकी विषयवस्तु का वर्णन अतिदीर्घकाय रचना है / इसके कर्ता अज्ञात हैं। है / उपाध्याय यशोविजयजी आदि ने इसके इस पर हरिभद्र की वृत्ति है / इसका एकमात्र आधार पर सज्झायों की रचना की है / 3 ... प्रकाशित संस्करण प्राकृत ग्रन्थ परिषद् का है / प्रो० ३९-जीवविभक्ति-इसमें 25 गाथाएँ हैं / यह वासुदेवशरण अग्रवाल ने (यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन भी अभी अप्रकाशित है / इसके कर्ता ग्रन्थ) उसकी भूमिका में इस पर एक विस्तृत और जिनचन्द्रसूरि हैं / इसमें शीर्षकानुसार थोकड़े दिये महत्त्वपूर्ण लेख है और जो अङ्गविद्या के सभी पक्षों गये हैं / का गम्भीर विश्लेषण करता है / ४०-पिण्डविशुद्धि-प्रस्तुत प्रकीर्णक आचार्य ३५-अजीवकल्प-यद्यपि महावीर जैन जिनवल्लभ की कृति है / इसमें 103 गाथाएँ हैं। विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित पइण्णयसुत्ताई की इस ग्रन्थ में साधु आहार एवं समाचारी नियम का प्रस्तावना में 22 प्रकीर्णकों में इसका नाम है, परन्तु विस्तृत वर्णन किया गया है / इस पर यशोदेव, यह मुद्रित नहीं है / अन्य कोई दूसरा संस्करण भी उदयसिंह, चन्द्रसूरि एवं कनककुशल की वृत्तियाँ प्राप्त नहीं होता है / यद्यपि जैसलमेर, पाटण आदि हैं / इसके संस्करण-विजयदानसूरि ग्रन्थमाला, भण्डारों में इसकी प्रतियाँ है / इसका वर्ण्यविषय सूरत से संस्कृत; जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार; मुम्बई साधुसमाचारी (एषणा समिति) हैं / से गुजराती एवं मनमोहन यशमाला, मुम्बई से ३६-तिथिप्रकीर्णक-जैन ग्रन्थावली में इसका संस्कृत अनुवाद के साथ प्रकाशित हैं / पूना में उपलब्ध होना बतलाया गया है, पर कहीं ४१-वङ्गचूलिका-इसमें 109 गाथाएँ हैं / यह भी इसकी खोज नहीं की जा सकी है। यशोभद्र की रचना है / इसका एकमात्र संस्करण 13. सारावली, पइण्ण्यसुत्ताई भाग-१ पृ० 350 गा-१-६ 44 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन