________________ इस प्रकार उपलब्ध प्रकीर्णकों में 22 ऐसे हैं भी लिये गये हैं / इसका उल्लेख उत्कालिक सूत्र जिनमें किसी न किसी प्रकार से समाधिमरण से के अन्तर्गत है / तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक में सम्बन्धित विषयवस्तु ही प्राप्त होती है / इसके मुख्य रूप से मानव जीवन के सभी पक्षोंअतिरिक्त जो प्रकीर्णक हैं, वे भिन्न-भिन्न विषयों गर्भावस्था, मानव शरीर रचना, उसकी सौ वर्ष की को लेकर रचे गये हैं / उनका संक्षिप्त परिचय आयु के दस विभाग १-बाला, २-क्रीड़ा, निम्न प्रकार हैं। ३-मन्दा, ४-बला, ५-प्रज्ञा, ६-हायणी, ७-प्रपञ्चा, २३-देवेन्द्रस्तव-प्रस्तुत प्रकीर्णक स्थविर ८-प्राग्भारा, ९-मुन्मुखी और १०-शायनी, उनमें ऋषिपालित की कृति है / इसका निर्देश नन्दीसूत्र होने वाली शारीरिक स्थितियाँ एवं उसके आहार और पाक्षिकसूत्र में प्राप्त होता है / इसमें कुल 311 आदि के बारे में विस्तृत विवेचन किया गया है / गाथाएँ हैं / ग्रन्थ का प्रारम्भ तीर्थङ्कर ऋषभ से स्त्रियों के दुर्गुणों को प्रतिपादित करने के उपरान्त लेकर महावीर तक की स्तुति से किया गया है। अन्त में धर्म के माहात्म्य को स्थापित किया गया तत्पश्चात् बत्तीस देवेन्द्रों का क्रमशः विस्तारपूर्वक है / यह ग्रन्थ धनपत सिंह-मुर्शिदाबाद, बालाभाई विवेचन किया गया है / इनमें असुरकुमार, ककलभाई- अहमदाबाद, आगमोदय समिति, नागकुमार, सुवर्णकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला एवं महावीर जैन दिशाकुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार, विद्यालय-बम्बई से मूल रूप में एवं देवचन्द्र विद्युतकुमार और अग्निकुमार-दस भवनपतिदेवों, लालभाई फण्ड से संस्कृत, सेठिया पारमर्थिक चमरेन्द्र, धरणेन्द्र आदि बीस भवनपति इन्द्रों का संस्था-बीकानेर से संस्कृत, हिन्दी; हेम्बर्ग से नामोल्लेख है / तत्पश्चात् इनकी स्थिति, आयु, संस्कृत एवं आगम संस्थान, उदयपुर से हिन्दी भवन संख्या एवं आवास आदि का निरूपण है। अनुवाद के साथ प्रकाशित है / इसके पश्चात् वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों, वैमानिकों २५-चन्द्रकवेध्यक-इसमें 175 गाथाएँ हैं / एवं अन्त में सिद्धों का विस्तार से वर्णन है / इसके जैसाकि इसके नाम से स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ में संस्करण बाबू धनपतसिंह-मुर्शिदाबाद, बालाभाई आचार के जो नियम बताये गये हैं उनका पालन ककलभाई-अहमदाबाद, आगमोदय समिति, कर पाना चन्द्रकवेध (राधा-वेध) के समान ही हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, महावीर जैन कठिन है / जिस प्रकार प्रवीण धनुर्धारी यन्त्र में विद्यालय से मूल एवं आगम संस्थान उदयपुर से फिरती पुतली की आँख भेदने में समर्थ हैं वैसे ही हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित है / अप्रमत्त साधक दुर्गति को दूर हटा देता है / इस २४-तन्दुलवैचारिक-यह प्रकीर्णक गद्य-पद्य ग्रन्थ के कर्ता अज्ञात हैं / इसके निम्नलिखित मिश्रित है / इसमें सूत्रों और गाथाओं की कुल प्रकाशित संस्करण हैं-बाबू धनपत . सिंहसंख्या 177 है / इसके गद्य भाग भगवतीसूत्र से मुर्शिदाबाद, हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, महावीर 11. 'गणिविज्जापइन्नयं संपा० प्रो. सागरमल जैन, आगमसंस्थान 40 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन