________________ 141 परिशिष्ट-१ अल्प शुभ परिणामई करीने जे शुभ कर्मप्रकृतिनो मंद रस बांध्यो होय ते उत्कृष्ट शुभ परिणामें करी 'चउसरण भणता थिको ते शुभ कर्मप्रकृतिनो अति तीव्र रस उपजावें जिम सेलडीनो रस कढतां तीव्र रस थाइ तिम शुभ परिणामें तीव्र रस थाइ / ज्ञानावरणीय नीचैर्गोत्रादिक अशुभ कर्मप्रकृति छे ते रस रहित करें अनें तीव्र अशुभ परिणामे करी अशुभ कर्मप्रकृतिनो तीव्र रस बांध्यो हुइ ते चउसरण भणतो मंदरस करइ / / 60 / / ता एयं कायव्वं बुहेहि निचं पि संकिलेसम्मि / होइ तिकालं सम्मं असंकिलेसम्मि सुकयफलं [सुगइफलं] / / 61 / / टि. सङ्क्लेशे रोगाद्यापदि नित्यं क्रियमाणं तदुपशमाय स्यात् / सम्यग्मनोवाक्कायः क्रियमाणं स्वर्गापवर्गपदम् / / 6 / / भव. बुधैरपि सङ्क्लेशेऽपि नित्यं ता एतत् चतुःशरणं कार्यम् / सङ्क्लेशरहितेऽपि त्रिकालं सम्यक् / असङ्क्लेशेऽपि सुकृतफलं भवति / / 6 / / बाला. ते माटइं ए चउंसरण करवू पंडितई सदाइ रोगादिक संकलेस आवइ वली विशेषे करवु होइ / संकलेस : नो हइतो त्रिण काल सम्यग् प्रकारिं भणतां थकां पुण्यफल थाइ, एटले चउचरण त्रिकाल गणतां रोग सोग आपदा सर्व नासें अने आपदा कसी नो हइं तो घणुं पुण्य थाइ / / 61 / / चउरंगो जिणधम्मो न कओ, चउरंगसरणमवि न कयं / चउरंगभवच्छे ओ न कओ, हा ! हारिओ जम्मो / / 2 / / टि. चतुः प्रकारः / / 62 / / अव. येन जीवेन चतुरङ्गो जिनधर्मो न कृतः / चतुरङ्गशरणमपि न कृतम् / येन चतुरङ्गभव संसारछेदो न कृतः / तेन पुरूषण, हा इति खेदे जन्म हारितः / / 2 / / बाला. दान-१, शील-२, तप-३, भावना-४, ए चतुरंगः श्री जिनधर्म जेणइं न करयो / अरिहंत-१, सिध्ध-२, साधू-३, अने धर्म-४, ए च्यारनूं शरण पणि जेणि न करयुं / / च्यार गतिरूप संसारनो - छेद जेणिं न करयो तेणिं हारयो माणसनो जनम ते खेदाइ हाय हाय हवै जे चउसरण न करें तेहनें पछतावो कहे छे / / 62 / /