________________ 129 परिशिष्ट-१ जेहनें मेईणी कहेतां भूमि ते साथिं लागूं छै सुपसत्थ कहेतां भगतिं भावे सुंदर / मस्तक जेहD एहवो - तत्थ कहेतां ते समय इस्यो भव्य जीव एहवं कहे छई / / 30 / / “कम्मलुक्खयसिद्धा" ए गाथाथी मांडीनिं छ गाथाइं श्रीसिध्धनुं शरण कीबूं / हिवै श्रीसाधुनुं शरण कहइ छै . जियलोयबंधुणो कुगइसिंधुणो पारगा महाभागा / . नाणाइएहिं सिवसुक्खसाहगा साहुणो सरणं / / 31 / / टि. कुगतिसमुद्रपारगाः / महान् माग अतिशयो येषाम् / / 31 / / अव. जीवलोकबन्धवः / कुगति-दुर्गति सिन्धवः गजाः / पारगा पारं गता महद् भाग्यवन्तः ज्ञानादिभिः शिवसौख्यसाधकाः / साधवो मम शरणं भूयात् / / 31 / / बाला. जीवलोकना बांधव, दुर्गतिरूपीया समुद्रनो पार पाम्या, महामहिमाना धणी, ज्ञानादिकई करी मोक्षसुखना साधणहार एहवा श्री साधु शरण होजो / / 31 / / केवलिणो परमोही विउलमईसुयहरा जिणमयम्मि / - आयरिय उवज्झाया ते सव्वे साहुणो सरणं / / 32 / / टि. परमावधियुक्ताः / / 32 / / अव. केवलिनः / परमावधयः यावत् दृष्टाः / विमल-निर्मलमतयः / जिनमते श्रुतधराः / आचार्या उपाध्याया ते सर्वे साधवः शरणं भूयात् / / 32 / / बाला. केवलज्ञानी, जे अवधिज्ञान उपना पछी में घडीइं केवलज्ञान उपजै ते परमावधिज्ञान कहीइ ते परमावधिज्ञानना धणी, जे ज्ञानें करी अढीद्वीप माहिला सन्नि या पंचेंद्रियना मनोगत भाव जाणे ते विपुलमतिमनःपर्यायज्ञानना धणी, सुयहरा कहेतां सकलश्रुतना धरनार, जिनशासननइ विषइ ___ आचार्य, उपाध्याय ते सर्वसाधु मुजनिं शरण होजो / / 32 / / चउदस-दस-नवपुवी दुवालसिक्कारसंगिणो जे य / जिणकप्पाऽहालंदिय परिहारविसुद्धिसाहू य / / 33 / / टि. पूर्वेभ्यो नवैव पूर्वाणि / / 33 / / अव. चतुर्दशदशनवपूर्वधरा ये साधवः / द्वादशएकादशाङ्गान् धारकाः ये साधवो ... ' जिनकल्पिहारिन्दक[यथालन्दिक] परिहारविशुद्धकसाधवः / / 33 / /