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________________ चतुःशरणप्रकीर्णकम् खण्डः-३ . 126 टि. सुखदानाम् / / 22 / / अव. उज्झित-त्यक्त-निराकृतजरामरणानां समग्र-समस्तदुःखेनातसत्वप्राणिनः शरणानां त्रिभुवन स्वर्गमर्त्यपातालसत्कजनानां लोकानां सुखदानां तेषामर्हतां भगवतां नमोः नमस्कारः / / 22 / / बाला. छाड्यां छिं जरा अनइ मरण जेणइ, समस्त दुःखिं पीड्या प्राणीनइ शरण आधार, त्रिभुवनना लोकनें सुखदायक एहवा श्रीअरिहंतनइ माहरो नमस्कार होये / / 22 / / अरहंतसरणमलसुद्धिलद्धपरिसुद्धसिद्धबहुमाणो / पणयसिरिरइयकरकमलसेहरो सहरिसं भणइ / / 23 / / टि. नम्रीभूतशिरः / / 23 / / अव. अर्हतां शरणेन या मलशुद्धिस्तया लब्धः प्रापितः परिशुद्धो निर्मल: सिद्धबहुमानो येन स प्रणतः नमस्कृतः / सिरि-मस्तके रचितो निवेशितकरकमलशेखरो मुकुटरूपस्सहर्ष सप्रमोद भणति / / 23 / / बाला. ते श्रीअरिहंतनइं शरण पडिवजवे करी थइ जे पापनी सोधि तेणि करी पाम्यो अति विशुद्ध श्रीसिद्ध उपरि बहुमान भक्तिभाव जेणइ नमाव्यु जे मस्तक तेहने विषइ जोडया हाथरूपियां कमलनो मुगट जेणे एहवो भव्य जीव हर्ष सहित कहै छइं / / 23 / / कम्मट्ठक्खयसिद्धा साहावियनाण-दसणसमिद्धा / सव्वट्ठलद्धिसिद्धा ते सिद्धा हुतु में सरणं / / 24 / / टि. सर्वार्थसिद्धिलम्भनिष्ठितार्थाः / / 24 / / अव. कर्माष्टक्षयेण सिद्धाः स्वाभाविकज्ञानदर्शनसमृद्धाः सर्वार्थलब्धयो दानादयः सिद्धाः / ते सिद्धा मम शरणं भूयात् / / 24 / / बाला. रोगदोसारीणं ए गाथाथी माडीनइ दशगाथाइं श्रीअरिहंतनूं शरण पडिवजिउं हवइं श्रीसिध्धनुं शरण पडिवजे छइ / / आठ कर्मनो क्षय करीनै सिद्ध्या, स्वाभाविक आवरणरहित ज्ञान अने दर्शन तेणे करी संपूर्ण, सर्व पदारथनी पामी छै सिद्धि जेणें / / ते श्रीसिध्ध होजो मुजनिं शरण / / 24 / / तियलोयमत्थयत्था परमपयत्था अचिंतसामत्था / / मङ्गलसिद्धपयत्था सिद्धा सरणं सुहपसत्था / / 25 / /
SR No.004445
Book TitleAgam Chatusharan Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size12 MB
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