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________________ जीव सृष्टि का परिचय प्र.216. जीव किसे कहते है? अनुकंपा, मैत्री और संयम का भाव उ. जो सचेतन हो, जो सुख-दुःख का जगाने के लिये सम्पूर्ण जीव सृष्टि का अनुभव करें, जो अनन्तज्ञान-दर्शन- ज्ञान परमावश्यक है। चारित्र आदि गुणों से युक्त हो, उसे प्र.219. माना कि जीव तत्त्व का ज्ञान जीव कहते है। मोक्ष का मुख्य सोपान है परन्तु प्र.217.जीव के लक्षण कौनसे हैं ? महाराजश्री! क्या जीव तत्त्व के उ.. जिससे जीव में जीवत्व की पहचान हो, ज्ञान से परिवार, समाज और वह उसका लक्षण कहलाता है। ज्ञान, विश्व को कोई लाभ हो सकता है? दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य (शक्ति) और उ. बिल्कुल ! जीव सृष्टि का ज्ञान व्यक्ति उपयोग, ये छहों लक्षण हर जीव में को जहाँ जीव मात्र के प्रति प्रेम और अल्प या विशेष रुप अवश्यमेव पाये मैत्री के रस से हरा-भरा एवं जाते हैं, अतः इन्हें लक्षण कहा जाता है। संवेदनशील बनाता है, वहीं प्रकृति, सजातीय का उत्पादन और वृद्धि को वातावरण और पर्यावरण के प्रति प्राप्त होना जीव की खास दो सचेत, करूणाशील और भीगा भीगा पहचान है जिसका वर्णन आचारांग बनाता है। आदि आगमों में उपलब्ध होता है। यदि व्यक्ति जीव तत्त्व को गहनता से प्र.218. जीव सृष्टि के ज्ञान कीअनिवार्यता जानता हुआ आत्मसात् करता है तो क्यों है? वह किसी को न तो अनावश्यक पीड़ा उ. जब तक व्यक्ति को जीव सृष्टि का देगा, न किसी के साथ क्रूरता भरा ज्ञान नहीं होगा, तब तक दया, व्यवहार करेगा। अहिंसा और संयम का जीवन जी. आज प्रकृति सम्पूर्ण विश्व से जिस पाना असंभव ही होगा। अतः प्रेम, प्रकार रूठी हुई है- अतिवृष्टि, अना
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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