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________________ वृष्टि, ज्वालामुखी, उल्कापात, भूकंप, (2)द्वीन्द्रिय- जिन जीवों के स्पर्शन यह सब प्रकृति पर किये गये एवं हो एवं रसन (जीभ), ये दो इन्द्रियाँ रहे अत्याचारों के ही परिणाम हैं। होती हैं, वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं, यदि व्यक्ति पानी, खनिज पदार्थ, जैसे-लट, घुण, कृमि, शंख, जोंक, पैड-पौधे, जलवायु आदि का कोडी, अलसिया, नाहरू, केंचुआ उचित-विवेकानुसार उपयोग करें, आदि। उसके अपव्यय से बचे तो जीव हिंसा (3)त्रीन्द्रिय- जिन जीवों के स्पर्शन, के महान् पाप से बचने के साथ-साथ रसन, घ्राण (नाक), ये तीन विश्व-मैत्री का संदेश भी जन-जन इन्द्रियाँ होती हैं, वे त्रीन्द्रिय तक पहुंचा सकता है। उनके अभाव कहलाते हैं। जैसे- चींटी, कानसे उपजी युद्ध, अराजकता, आतंक खजूरा, मकोड़ा, उदेहि, खटमल, आदि समस्याओं को सहज ही इल्ली, जूं आदि। समाहित किया जा सकता है। (4)चतुरिन्द्रिय- जिन जीवों के चक्षु . विभिन्न जाति, देश, प्रदेश के मध्य जो (आँख) सहित चार इन्द्रियाँ होती तनाव-टकराव की स्थिति बढती जा हैं, उन्हें चतुरिन्द्रिय कहते है। रही है, वह भी जीव मात्र के प्रति मैत्री जैसे–पतंग, मक्खी, मच्छर, बिच्छु, और स्नेह के प्रभावी उपाय से मिटायी भ्रमर,डांस,टिड्डी, जुगनू तितली, जा सकती है। मधुमक्खी आदि। प्र.220.इन्द्रियों के आधार पर जीव के। (5)पंचेन्द्रिय-पांच इंद्रियों वाले जीव कितने भेद होते हैं? पंचेन्द्रिय कहलाते हैं। जैसेउ. पांच भेद मनुष्य, हाथी, घोड़ा, देव, नारकी (1)एकेन्द्रिय- जिन जीवों के एक आदि / मात्र स्पर्शनेंद्रिय (त्वचा) होती है, वे प्र.221.त्रस और स्थावर में क्या अन्तर है? एकेन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे पृथ्वी, उ. (1)त्रस- एक स्थान से दूसरे स्थान पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति। पर आने, जाने वाले जीवों को त्रस
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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