________________ इसके पाँच कारण है- मिथ्यात्व, प्र.204.धर्म और पुण्य में क्या अन्तर है? अविरति, प्रमाद, कषाय एवं योग। उ. धर्म आत्मा का परिणाम है जबकि पुण्य प्र.200.बंध किसे कहते है? शुभ कर्म-पुद्गल रूप है अतः एक उ. आत्मा के साथ कर्मों का जुड़ना/ जीव है और दूसरा अजीव। धर्म मिलना बंध कहलाता है। प्रकृति (समता, सरलता, निर्लोभता आदि) आदि चार प्रकार के बंध का विवेचन आत्मा की पवित्र साधना है। इससे कर्म पदार्थ की व्याख्या में किया गया जीव का कल्याण होता है परन्तु पुण्य की इच्छा से पाप होता है अतः प्र.201.संवर किसे कहते है? सामायिक, प्रतिक्रमण, सुपात्र दान उ. संवर आश्रव का विपरीत तत्त्व है। आदि धर्म की भावना से करने चाहिये, आत्मा में आते हुए नये कर्मों को न कि सत्ता, सम्पत्ति, पुत्र आदि की रोकना संवर कहलाता है। संवर पाँच इच्छा से। प्रकार से होता है (1) सम्यक्त्व (2) व्रत/ प्र.205. नव तत्त्वों में हेय, ज्ञेय एवं उपादेय महाव्रत (3) अप्रमाद (4) * कषाय- तत्त्व कितने हैं? मुक्ति (5) अयोग। उ. (1)हेय- छोड़ने योग्य-पुण्य, पाप, प्र.202.निर्जरा किसे कहते है? . आश्रव, बंध। ___उ. यह बंध का विपरीत तत्त्व है। आत्मा (2) ज्ञेय- जानने योग्य-जीव व से जुड़े कर्मों का कुछ अंशों में नष्ट अजीव। होना निर्जरा कहलाती है। अनशन, (3)उपादेय- अपनाने योग्य-संवर, ऊणोदरी; रस परित्याग, प्रायश्चित्त, निर्जरा और मोक्ष। पुण्यानुबंधी स्वाध्याय आदि बारह प्रकार के तप पुण्य की अपेक्षा से पुण्य को भी करने से निर्जरा होती है। उपादेय कहा गया है। प्र.203. मोक्ष किसे कहते है? प्र.206. नव तत्त्वों को समुद्र एवं नौका के उ. आत्मा से सम्पूर्ण कर्मों का अलग होना। मोक्ष कहलाता है। सम्यक्ज्ञान उदाहरण से समझाईए। दर्शन–चारित्र और तप से मोक्ष की ' ___ उ. (1)जीव- यह नौका स्वरूप है और प्राप्ति होती है। इसकी प्राप्ति के बाद इधर-उधर भटक रहा है। जीव पुनः संसार में नहीं आता है। (2)अजीव- यह सागर स्वरूप है।