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________________ उ. 1. होना। जैसे - ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने की भाँति कोई व्यक्ति बीमार पुण्य के उदय से षट्खण्ड का पड़ा और वह बीमारी में मन ही मन साम्राज्य पाया पर उसकी आर्तध्यान, क्रोध, खेदादि करके आसक्ति में बंध- कर महापाप नये पाप का बंध करता है उसे कर्मों का संचय किया और मरकर पापानुबंधी पाप कहते है। सातवीं नरक में गया। (2)पुण्यानुबंधी पाप- जो पाप प्र.195. पुण्य कितने कारणों से बन्धता हैं? उदयकाल में पुण्य का बंध 1. अन्न पुण्य-पात्र कोअन्न दान से। करवाता है। जैसे-पाप के उदय 2. जल पुण्य-पात्र को जल दान से। से सनत्कुमार चक्रवर्ती को सोलह 3. लयण पुण्य-पात्र को स्थान- रोगों का उपसर्ग आया परन्तु उस दान से। दुःख में भी समता रखकर वे 4. शयन पुण्य-पात्र को शय्या आदि देवलोक में गये। इसे पुण्यानुबंधी के दान से। पाप कहते है। 5. वस्त्र पुण्य-पात्र को वस्त्र देने से। प्र.198. पाप कितने कारणों से बंधता है? 6. मन पुण्य-शुभ विचार से। अठारह कारणों से- (1) हिंसा (2) 7. वचन पुण्य-शुभ वचन से। असत्य (3) चोरी (4) अब्रह्मचर्य (5) 8. काय पुण्य-शुभ प्रवृत्ति से। परिग्रह (6-9) क्रोध- मान- माया9. नमस्कार पुण्य-देव, गुरु, गुणी लोभ (10-11) राग-द्वेष (12) कलह को नमन-विनय करने से। (झगड़ा) (13) अभ्याख्यान (झूठा प्र.196. पाप किसे कहते है? कलंक लगाना) (14) पैशुन्य (चुगली) उ. जिस कारण जीव दुःख, अपयश, (15) रति-अरति (सुख में आनंद एवं गरीबी, कुरूपता आदि पाता है। दुःख में शोक) (16) परपरिवाद इसके 82 भेद कहे गये हैं। (परनिंदा) (17) माया मृषावाद (कपट प्र.197.पाप कितने प्रकार के कहे गये हैं? युक्त झूठ बोलना) (18) मिथ्यादर्शन उ. दो प्रकार के शल्य (गलत धारणा)। (1)पापानुबंधी पाप- जो पाप नये प्र.199.आश्रव किसे कहते है? पाप का बंध करवाता है। पाप उ. पुण्य-पाप रूप कर्मों के आत्मा में के उदय से कालसौकरिक कसाई आने के द्वार को आश्रव कहते हैं।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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