________________ . पापों की आलोचना : प्रतिक्रमण प्र.146. प्रतिक्रमण आवश्यक किसे कहते है? निर्मित होती है, उससे वीरतापूर्ण उ. श्रमण के द्वारा पंचमहाव्रत आदि रस स्रावित करने वाली ग्रंथियाँ श्रमणाचार में और श्रावक के द्वारा बारह सक्रिय होती हैं, अतः वंदित्तु सूत्र में व्रत आदि श्रावकाचार में जो अतिचार/ दायां घुटना ऊँचा किया जाता है। अनाचार का सेवन हुआ है, उनकी प्र.148.वंदितु सूत्र बोलते समय उसके आलोचना जिस आवश्यक के द्वारा होती बीच में खड़े क्यों होते हैं? है, उसेप्रतिक्रमण आवश्यक कहते है। उ. बारह व्रतों में लगे अतिचारों की प्र.147.प्रतिक्रमण में कभी बायाँ घुटना आलोचना करने के उपरान्त व्यक्ति और कभी दायाँ घुटना ऊँचा पाप के भार से हल्का हो जाता है, इस किया जाता है, इसका क्या कारण है? कारण वंदितु सूत्र के मध्य में खडा ___उ. 1. जब कभी विनय, नमन आदि भाव हुआ जाता है। प्रकट करने होते हैं, तब बायाँ प्र.149.प्रतिक्रमण आवश्यक के कौनघुटना ऊँचा किया जाता है। इस घुटने को ऊँचा करने से शरीर में वे उ.. * वंदित्तु, इच्छामि पडिक्कमिऊँ, सात ग्रन्थियाँ एवं रस स्रावित होते हैं, लाख, अठारह पाप स्थानक आदि। जिनसे विनय गुण पुष्ट एवं प्रकट प्र.150.ऐसा कौनसा शब्द है, जिससे होता हैं। जं किंचि, नमुत्थुणं आदि बार-बार प्रतिक्रमण किया जाता है? विनय प्रकट करने के सूत्र हैं, अतः उ. मिच्छामि दुक्कडम्। उस समय बायाँ घुटना ऊँचा प्र.151. कायोत्सर्ग से क्या अभिप्राय है? किया जाता है। उ. काया के प्रति आसक्ति का त्याग 2. दायाँ घुटना ऊँचा करके वंदित्तु करके आत्मध्यान में उपस्थित होना सूत्र के द्वारा व्यक्ति स्वयं के कायोत्सर्ग कहलाता है। दुष्कृत्यों की निंदा करने का प्र.152. कायोत्सर्ग के संदर्भ में आवश्यक वीरतापूर्ण कार्य करता है। दायां जानकारी दीजिये। घुटना ऊँचा करने से जो मुद्रा उ. 1. कायोत्सर्ग में दृष्टि नासिका के