________________ भगवान महावीर 2500 वर्ष पूर्व कर उ. रात्रि में नहीं दिखने से मार्ग की चुके हैं। प्रमार्जना करते हुए चलना असंभव है, 4. मिट्टी व भूमि में चुम्बकीय ऊर्जा एवं उस समय हिंसक पशु एवं दुष्ट विद्यमान है। इस ऊर्जा से व्यक्ति लोगों का उपद्रव हो सकता है। इन प्राणवान्, स्वस्थ व रोग मुक्त रहता कारणों से जिनेश्वर परमात्मा ने हैं। इसीलिए साधु बिना चप्पल आदि रात्रि-विहार का निषेध किया है। के विहार करता है। प्र.84.क्या साधु चातुर्मास में विहार कर प्र.82.साधु पद विहारी न होकर वाहन सकते हैं? विहारी हो जाये तो जनकल्याण उ. विशेष परिस्थिति में विहार करने का अधिक हो सकता है। क्या काल स्थानांग सूत्र में कथन किया गया है। परिवर्तनानुसार यह सुविधा उचित जैसे राजविरोध उत्पन्न हो जाये, दुर्भिक्ष नहीं है? होने से भिक्षा न मिले, गाँव/नगर से उ. नहीं! बिल्कुल नहीं! साधु आत्म कोई बाहर निकाल दे, बाढ आ जाये, साधक है, न कि प्रचारक / जीवन और चारित्र का नाश करने वाले स्वकल्याण के बाद जनकल्याण है। दुष्ट लोगों का उपद्रव उपस्थित हो जिनाज्ञा, अहिंसा एवं. अपरिग्रह को जाये। इन पाँच कारणों से साधु ताक पर रखकर न स्वकल्याण संभव चातुर्मास के पहले पचास दिनों में है, न परकल्याण। विहार कर सकते हैं। शास्त्रज्ञानार्जन, वाहनधारी के अहिंसा एवं अपरिग्रह आचार्य-उपाध्याय सेवा, चारित्रमहाव्रत खण्डित होने से साधुत्व नहीं रहेगा। राग, प्रमाद आदि दोष बढ़ेंगे, संरक्षण आदि कारणों से शेष 70 दिनों गाँव-गाँव में विहार न होने में भी विहार किया जा सकता है। से जनकल्याण के मार्ग अवरुद्ध हो प्र.85.साधु-साध्वी को किस क्षेत्र में जायेंगे। इन सबके परिणामस्वरूप चातुर्मास करना चाहिये? क्या आपकी प्रीति, श्रद्धा एवं आपका उ. 1. जहाँ अध्ययन–अध्यापन एवं समर्पण अखण्ड रह पायेगा? स्वाध्याय-ध्यान-साधना हेतु हमेशा यह बात याद रखना कि साधु उचित स्थान हो / के लिये स्वकल्याण पहले है और 2. लघुनीति-बड़ीनीति विसर्जन हेतु परकल्याण बाद में है। निरवद्य स्थान उपलब्ध हो / .. प्र.83. रात्रि में विहार की जिन-आज्ञा 3. निर्दोष एवं प्रासुक गौचरी सुलभ हो। क्यों नहीं है? * ************ 29 * *