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________________ 4. साधुओं के प्रति श्रद्धा एवं आदर की प्रवाह सन्तुलित हो जाता है / ज्ञान __ भावना हो। तन्तु सक्रिय होते हैं। इसे एक्युपंक्चर प्र.86. साधु को शास्त्रों में निर्भय कहा है भी कहा जा सकता है। यदि कोई तो फिर वे डण्डा क्यों रखते हैं? साधुता की हर उपासना करने में समर्थ उ. डण्डा किसी को डराने, पीटने अथवा हो पर उससे लोच न हो सके तो वह मारने के लिये नहीं अपितु नदी पार मुण्डन भी करवा सकता है, यह करते समय उसकी गहराई जानने के कल्पसूत्र में कहा गया है। लिये रखते हैं। प्र.90. आगमों में कौन-कौनसे विशेष पद प्र.87. तो क्या साधु चलकर नदी पार कर कहे गये हैं? सकते हैं? उ. 1. गणधर- तीर्थंकरों के प्रधान शिष्य उ. हाँ! कर सकते हैं परन्तु तब, जब कोई अथवा मुनियों की दैनिक दूसरा मार्ग न हो। परन्तु इसमें भी साधनाओं का ध्यान रखने वाले। शास्त्रीय नियम है कि पानी गहरा हो, 2. आचार्य-पंचाचार के पालक, डूबने का भय हो तब नाव का संघ-शासन में जिनाज्ञा का प्रवर्तन आगम-प्रमाण से उपयोग किया जा करने वाले। सकता है। उस समय चलकर नदी पार 3. उपाध्याय- सूत्र-अर्थ की वाचना करना शास्त्राज्ञा का उल्लंघन करना देने वाले। है। 4. प्रवर्तक- साधुओं को योग्यतानुसार प्र.88. साधु कामली का उपयोग क्यों करते तप, वैयावच्च, संयम आदि में प्रवृत्त करने वाले। उ. भगवती सूत्रानुसार सूक्ष्म अप्कायिक 5. स्थविर- संयम से डिगते हुए जीवों की वृष्टि होने से ऊनी कामली ___साधुओं को स्थिर करने वाले। का उपयोग करते हैं ताकि उन जीवों 6. गणी- गण (साधु-समुदाय) की को किलामणा (पीडा) न हो। सार संभाल करने वाले। प्र.89.जैन साधु लोच क्यों करते हैं? प्र.91. दस प्रकार के यतिधर्म कौनसे हैं ? उ. जैन साधु स्वयं पर आश्रित है। यदि उ. मोक्ष मार्ग में यत्न करने वाला यति और मुण्डन आदि करें तो अन्यों पर निर्भर उसका धर्म यतिधर्म कहलाता है, जिसके रहना होगा, जिससे उसकी साधुता दस भेद शास्त्रों में वर्णित हैखंडित होगी। लोच करने से रक्त 1. क्षमा- प्राणी मात्र के प्रति मैत्री रखते हुए क्रोध, अपमान, प्रहार, *************** 30 * ********* **
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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