________________ है। अंग है। यदि आप ऐसा कहते हैं कि महावीर प्रभु का हर सिद्धान्त बस, ट्रेन आदि आपके निमित्त वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है जबकि नहीं चलती है अतः उपयोग करना पद-यात्रा में तो ऐसी कोई बात श्रमण-आचार के विरुद्ध नहीं है तो भी नजर नहीं आती। गलत ही है क्योंकि गाड़ी में बैठने से उ. बिल्कुल! पद-यात्रा का सिद्धान्त साधु उसके द्वारा होने वाली हिंसा का संयम की दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है, अनुमोदक अवश्य होता है जबकि वह वैज्ञानिक दृष्टि से भी उतना ही विशिष्ट तीनों करण से हिंसा का त्यागी है। दूसरा कारण-पद-विहार करने से 1. वर्तमान का प्रमादी व्यक्ति पद ग्रामानुग्राम विचरण होने के साथ विहारी न होकर सर्वथा वाहन साथ अप्रमत्तता का पोषण होता है विहारी हो गया है। दस-बीस कदम अन्यथा छोटे छोटे गांवों में होने वाला जाना हो तब भी वह वाहन की विहार बंद हो जायेगा। सहायता लेता है, ऐसी स्थिति में तीसरा कारण –साधु स्वावलम्बी होता शारीरिक अवयवों का उपयोग है, वह किसी के आश्रय से जीवन न होने से व्यक्ति अल्पावधि में ही . निर्वाह नहीं करता है। निष्क्रिय हो रहा है। चौथा कारण-पद विहार करना 2. चलने से घुटने, पांव आदि का जिनाज्ञा की उपासना है और वह व्यायाम होता है, शरीर में स्फूर्ति बनी महान् फल देने वाली है। यह कहना भी रहती है। अप्रमाद आदि गुणों का अनुचित ही है कि भगवान महावीर के समय बस, ट्रेन, प्लेन आदि नहीं थे अतः 3. पद-विहार से मोटापा नहीं आता। प्रभु के त्याग था पर उस समय अश्व, मोटापा विविध रोगों को आमंत्रण बैल, ऊँट, रथ आदि तो थे ही। साधु देने वाली पत्रिका है। मोटापे का जीवन त्यागमय होता है। वह शब्द से आलस आता है और आलस से से ही नहीं, आचरण से भी अहिंसा एवं डायबिटीज, अपाचन आदि करुणा का संदेश-उपदेश देता है। बीमारियां उग्ररुप धारण कर लेती कबीर ने बहुत अच्छा कहा है हैं। फलतः व्यक्ति रूग्ण हो जाता है। कोई चाले हाथी घोडा, पालखी मंगाय के आज डॉक्टर प्रातः भ्रमण (Morning साधु चाले पैया-पैया, कीडी को बचाय के !! Walk) को विविध रोगों का प्रभावक प्र.81.पर महाराजश्री! आप कहते हैं कि उपाय मानते हैं जिसकी प्ररुपणा *************** 28 **************** रक्षण होता है।