________________ नहीं करने से आँखों में अंधेरा आने लगता है। (4) संयम का पालन / (5) प्राण-जीवन की रक्षा / (6) स्वाध्याय-ध्यान की साधना / साधु आहार छोड़ता है, तब भी छह कारणों से(1) रोगोत्पत्ति / (2) नृप, स्वजन-परिजन, देव, तिर्यंच आदि का उपसर्ग उपस्थित होने पर। (3) ब्रह्मचर्य-पालन / (4) जीव-दया / (5) तपश्चर्या | (6) अन्तिम संथारा करके शरीर को छोड़ने के लिये। प्र.74.साधु का जीवन खुली पुस्तक के समान एवं स्फटिकवत् पारदर्शी कहा गया है, तो फिर वे आहार गृहस्थों से छिपकर क्यों करते हैं? उ. साधु के पात्र में सरस-नीरस, रूखे-सूखे, विविध भोज्य पदार्थ आते हैं। गृहस्थ सरस, स्वादिष्ट आहार देखकर अश्रद्धान्वित हो सकता है कि देखो! यह जीवन कैसा? न परिश्रम करना, न कमाना। अच्छी सामग्री लाना/खाना, यही साधु का कार्य है। दूसरी तरफ नीरस, फीके, रूखे-सूखे पदार्थ देखकर सोच सकता है कि मैं तो दीक्षा नहीं लूंगा। ऐसे पदार्थ मैं तो नहीं खा सकता। अतएव सरस या नीरस पदार्थ देखकर संयम एवं श्रद्धा भावों में हानि एवं किसी की कुदृष्टि से भोजन का अपाचन, उदरशूलादि की संभावना के कारण गृहस्थों के सम्मुख साधु को गौचरी करने की प्रभु की मनाही है। प्र.75.महाराजश्री! - हमने सुना है कि कदाचित् गौचरी ज्यादा होने से साधु उसे परठ देते हैं पर वह आहार किसी भूखे, गरीब को दे दिया जाये तो क्या आपत्ति हो सकती है? इसमें जिनाज्ञा कारण है और उसमें वैज्ञानिकता की रोशनी है। पहली बात कि गृहस्थ, जो अविरति में है, उसे साधु आहार देगा तो असंयम का पोषण होगा। दूसरी बात यह कि भोजनदाता के विश्वास का खण्डन एवं चोरी होगी क्योंकि वह पंचमहाव्रतधारी के लिये ही देता है। तीसरी बात-इस प्रकार तो साधु प्रतिदिन अधिक-अधिक लाकर परिवार एवं गरीबों का पोषण करने लग जायेगा। प्र.76.प्रथम एवं अंतिम तीर्थंकरों के साधुओं के पाँच एवं शेष बाईस तीर्थंकरों के साधुओं के चार महाव्रत होते हैं, ऐसा फर्क किस कारण है? उ. आदिनाथ एवं महावीर के साधु पंचमहाव्रती होते हैं, शेष बाईस