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________________ व गौचरी लेने का निषेध हैं, जो लोक में वस्त्र, पात्र, कम्बल आदि गृहस्थ को निंद्य एवं घृणित हो। देने वाले साधु के लिये प्रायश्चित्त का प्र.70.क्या गौचरी में लायी हुई वस्तु विधान किया गया है। क्योंकि इससे गृहस्थ को वापस दे सकता है? असंयती का पोषण और असंयम की सामान्यतया साधु के पात्र में आने के अनुमोदना होती है। बाद आहार उसका हो जाता है, अतः प्र.72.साधु का आहार करना, कर्म बंधन वापस देना निषिद्ध है परन्तु जोर - का कारण है अथवा कर्म निर्जरा जबरदस्ती कोई पदार्थ पात्र में। का? रख देता है और जिसका कोई भी साधु उपयोग नहीं करता है तो उसे तत्काल उ. साधु की हर क्रिया कर्म निर्जरा का वापस किया जा सकता है। कारण बनती है बशर्ते वह शास्त्रानुसार चूर्ण, गोली, मरहम आदि दवा में प्रयुक्त हो। साधु आहार करता है तब भी कर्म होने वाली वस्तुएँ आवश्यकतानुसार निर्जरा होती है क्योंकि वह काम में लेकर शेष वापस दी जा सकती स्वाद-पोषण के लिये नहीं, अपितु हैं। शरीर को टिकाकर संयम साधना में वस्त्र और पात्र के लिये यह नियम है अभिवृद्धि के लक्ष्य से आहार करता है। कि वे काम नहीं लिए जाये, तब तक प्र.73.क्या शास्त्रों में साधु के आहार लौटाये जा सकते हैं, काम में लेने के करने अथवा छोड़ने के कारण बाद नहीं। बताये गये हैं? काष्ठपट्ट, बाजोट, सुई, कैंची, उ. कोई भी साध स्वाद-पोषणार्थ गौचरी नेलकटर, पेन-पेन्सिल आदि संयम नहीं करता और कोई भी साधु क्रोधादि साधना में उपयोगी वस्तुएँ काम में कारणों से गोचरी नहीं छोड़ता अपितु लेकर वापस दी जा सकती हैं। ऐसी काम में लेकर वापस की जा दोनों में संयम शुद्धि व वृद्धि का ही भाव सकने वाली वस्तुओं को जैन-ग्रन्थों में रहता है। 'पडिहारी' और नहीं दी जा सकने कोई भी साधु छह कारणों से आहार वाली वस्तुओं को 'अपडिहारी' कहा लेता हैगया है। (1) भूख को शांत करने के लिये। प्र.71.क्या साधु अपनी वस्तु गृहस्थ को दे (2) आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी आदि सकते हैं? ___ की वैयावच्च (सेवा) करने के लिये। उ. नहीं! आगमों में अपनी खाद्य सामग्री, (3) ईर्या समिति का पालन-आहार **************** 25 ****************
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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