________________ सिद्ध परमात्मा का स्वरूप प्र.53.सिद्ध किसे कहते है? शरीर ही नहीं है तो उसकी लम्बाई उ. जिन्होंने आठों कर्मों का सर्वथा नाश का कथन असंगत प्रतीत होता है। कर दिया हैं एवं जन्म-मरण के कुचक्र तो क्या सिद्ध सशरीरी होते हैं? से मुक्त हो चुके हैं, उन्हें सिद्ध कहा उ. नामकर्म, जो शरीर का कारण है, जाता है। उसका सम्पूर्ण क्षय हो जाने के कारण प्र.54.सिद्ध परमात्मा कहाँ रहते हैं? शरीर नहीं होता है परन्तु यहाँ उ. उर्ध्वलोक में सर्वार्थसिद्ध विमान से आत्म-प्रदेशों की अपेक्षा से शरीर कहा बारह योजन ऊपर पैंतालीस लाख गया है। योजन लम्बी-चौड़ी, गोल तथा मध्य में प्र.57.ठीक है, यह बात तो समझ में आ आठ योजन मोटी अर्जुन-सुवर्णमय गयी, परन्तु इतने छोटे से स्थान में छत्राकार शिला है, वहाँ सिद्ध आत्माएँ अनन्त जीव भला कैसे समा सकते स्थित रहती हैं। इसके मुक्ति, मोक्ष, मुक्तालय, सिद्धक्षेत्र, निर्वाण, उ. जिस प्रकार ज्योति में ज्योति निःसंकोच सिद्धशिला आदि अनेक नाम शास्त्रों में समा जाती हैं, एक-दूसरे में बाधक वर्णित हैं। नहीं बनती हैं, उसी प्रकार सीमित क्षेत्र प्र.55.सिद्धों का संस्थान-आकार कैसा में अनन्त आत्माएँ समा जाती हैं। कहा गया है? प्र.58. क्या जैन धर्मी ही सिद्ध बन सकते उ. बैठे, सोये, खड़े जैसी स्थिति में जीव हैं अथवा अजैन भी? का निर्वाण होता है, सिद्ध रूप में भी उ. वह हर जीव सिद्ध बन जाता है, जो वैसा ही आकार रहता है। उनकी आठों कर्मों का क्षय कर देता है। जैन जघन्य अवगाहना एक हाथ आठ दर्शन अनेकान्तवादी है। यहाँ अंगुल प्रमाण एवं उत्कृष्ट रूप से 303 जैन-अजैन का कोई प्रश्न नहीं है। धनुष 1 हाथ 8 अंगुल प्रमाण कही गयी जीवाभिगम आदि सूत्रों में सिद्धों के पन्द्रह भेद कहे गये हैं, जिसमें एक भेद प्र.56. परन्तु महाराज श्री ! जब सिद्धों के अन्यलिंग सिद्ध है। इसका अर्थ है कि *****************_ 20 **** ** ***