________________ जिसके जिनेश्वर प्ररूपित वेश, (7) किसी ज्ञानी से ज्ञान पाकर सिद्ध . रजोहरण आदि न हो, वल्कल, गेरुआ बने हो, वे बुद्धबोधित सिद्ध जैसे वस्त्र हो, फिर भी आत्म भावों में रमण अतिमुक्तक / करके सिद्ध बन सकते हैं। जैसे (8) पुरुष के रूप में सिद्ध होने वाले वल्कलचिरी / पुरूषलिंग सिद्ध जैसे पुण्डरीक प्र.59.सिद्ध भगवंतों के ज्ञान-दर्शनादि स्वामी। समान होते हैं या नहीं, यदि समान (9) स्त्री के रूप में सिद्ध होने वाले होते हैं तो पन्द्रह भेद क्यों? स्त्रीलिंग सिद्ध जैसे मृगावती / उ. उनके ज्ञानादि अनन्त गुण समान होते हैं -- (10) कृत्रिम नपुंसक के रूप में सिद्ध होने उसमें बिल्कुल भी भेद नहीं होता है परन्तु वाले नपुंसकलिंग सिद्ध जैसे पन्द्रह भेद निर्वाण काल की अवस्था के गांगेय अणगार / आधार पर किये गये हैं जैसे (11) जैन साधु के वेष में सिद्ध होने वाले (1) तीर्थ की स्थापना के बाद सिद्ध स्वलिंग सिद्ध जैसे सुधर्मास्वामी / होने वाले तीर्थ सिद्ध जैसे गौतम (12) अन्य वेश में सिद्ध होने वाले गणधर / अन्यलिंग सिद्ध जैसे वल्कलचिरी। (2) तीर्थ-स्थापना से पूर्व सिद्ध होने (13) गृहस्थ के वेश में सिद्ध होने वाले वाले अतीर्थ सिद्ध जैसे मरूदेवी गृहलिंग सिद्ध जैसे मरुदेवी माता। माता / (3) तीर्थंकर बनकर सिद्ध होने वाले (14) अकेले सिद्ध होने वाले एक सिद्ध तीर्थंकर सिद्ध जैसे ऋषभादि। जैसे महावीर। (4) तीर्थंकर नहीं परन्तु केवली के रूप (15)अनेक जीव एक साथ सिद्ध होने में होने वाले अतीर्थंकर सिद्ध वाले अनेक सिद्ध जैसे ऋषभ, जैसे चन्दनबाला। पार्श्वनाथ / (5) जो स्वयं ही बोध प्राप्त करके सिद्ध प्र.60. जब आठों कर्मों का क्षय हो जाता है, बने, वे स्वयंबुद्ध सिद्ध जैसे तब उनमें कौनसे गुण प्रकट होते हैं? अनन्त तीर्थंकर | उ. (1) ज्ञानावरणीय कर्म क्षय से (6) किसी विशेष निमित्त को पाकर केवलज्ञान। प्रतिबुद्ध होकर सिद्ध बने, वे (2) दर्शनावरणीय कर्म क्षय से केवल प्रत्येकबुद्ध सिद्ध जैसे दुर्मुख / ___ दर्शन /