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________________ “प्र.28.अरिहंत प्रभु को जन्माभिषेक हेतु ले जाते समय इन्द्र कितने रूप बनाता है? उ. पाँच रूप1. एक रूप में अरिहंत परमात्मा को हाथ में लेते हैं। 2-3.दूसरे-तीसरे रूप में उनके दोनों तरफ चामर दुलाते हैं। 4. चौथे रूप में उनके ऊपर छत्र स्थापित करते हैं। 5. पाँचवें रूप में परमात्मा के आगे वज्र घुमाते हुए चलते हैं। प्र.29.अरिहंत परमात्मा के जन्माभिषेक में , चौसठ इन्द्र कौन कौन होते हैं? ... उ. 1. बीस भवनपति 2. सोलह व्यंतर 3. सोलह वाणव्यंतर 4. दो ज्योतिष्क 5. दस वैमानिक। . प्र. 30. अरिहंत परमात्मा कितना दान देते हैं? उ. प्रतिदिन एक करोड़ आठ लाख स्वर्ण मुद्राओं का और संपूर्ण वर्ष में 3 अरब 88 करोड़ 80 लाख स्वर्णमुदाओं का दान देते हैं। उनके दान को संवत्सर दान कहते है। प्र.31.अरिहंत परमात्मा किन अठारह दोषों से मुक्त होते हैं? उ. 1. मिथ्यात्व 2. अज्ञान 3. क्रोध 4. मान 5. माया 6. लोभ 7. रति 8. अरति 9. निद्रा 10. शोक 11. असत्य 12. चोरी 13. मत्सरता 14. भय 15. हिंसा 16. मोह 17. क्रीडा 18. हास्य। प्र.32.अरिहंत परमात्मा की विशेषताएँ बताओ। उ. 1. गर्भ में मति - श्रुत - अवधि, तीन ज्ञान धारक होते हैं। दीक्षा लेते ही चतुर्थ मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति होती है एवं घाती कर्मों के क्षय के बाद केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थ की स्थापना करते हैं। . 2. छद्मस्थ अवस्था में चार कारणों से बोलते हैं - 1. स्थान की याचना के लिये 2. मार्ग पूछने के लिये 3. आज्ञा लेने के लिये 4. प्रश्न का उत्तर देने के लिये। 3. तीर्थकर प्रभु की भिक्षा के समय पांच दिव्य प्रकट होते हैं- 1. सुगंधित जल-वृष्टि 2. पुष्प वर्षा 3. 'अहोदानम्' की उद्घोषणा 4. दिव्य ध्वनि घोष 5. साढे बारह करोड स्वर्ण मुद्राओं की वृष्टि / 4. परमात्मा का शरीर रोग रहित एवं ___ रक्त दूध की भाँति श्वेत होता है। 5. उनके श्वासोच्छवास से पद्म नीलकमल की सुगंध आती है। 6. उनका आहार-निहार प्रछन्न होता है। 7. दीक्षा के बाद मस्तक, दाढी, एवं मूंछ के केश बढते नहीं हैं। 8. जब भगवान विचरण करते हैं, तब ऋतुएँ सुखद बन जाती हैं। अमनोज्ञ (अप्रिय) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श शब्द नहीं रहते हैं। उपद्रव नहीं होते हैं। अतिवृष्टि-अनावृष्टि नहीं होती हैं, नई व्याधि उत्पन्न नहीं .
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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