________________ लगा के (सभी अंगुलियाँ एक दूसरे के आमने-सामने मिलती हैं) दोनों अंगूठे एक दूसरे के आसपास रखते हुए सुरभि या धेनुमुद्रा बनती है। इस मुद्रा में गाय के आंचल जैसी आकृति बनने से इसे धेनुमुद्रा कहा जाता है। लाभ: 1. इसे कामधेनु मुद्रा भी कहा जाता है। जैसे कामधेनु इच्छित फल प्रदान करती है, वैसे सुरभि __मुद्रा से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। 2. वात, पित्त और कफ की प्रकृति का संतुलन होता है। 3. नाभिकेन्द्र स्वस्थ होता है एवं शरीर तथा पेट संबंधी रोग शांत होते हैं। 4. चित्त की निर्मलता बढ़ती है और योगसाधना में सहयोग मिलता है। 5. ध्यान करने के वक्त यह मुद्रा करने से ब्रह्मनाद (दिव्यनाद) सुनाई देता है। दुन्यवी शोरगुल से दूर होकर इस नाद में लीन रह सकते हैं। ** **** * * 304 ****************