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________________ करके वाम (बायी) नासिका से वायु देह बल क्षीण होता है। को धीरे-धीरे भीतर में ग्रहण करें 6. ये तीन प्राणायाम करते समय बीच अर्थात् पूरक प्राणायाम करें। की दोनों मध्यमा एवं तर्जनी फिर अनामिका अंगुली और अंगूठे से अंगुलियों को मोड दे। दाहिनी दोनों नासिका के छिद्रों को बन्द कर नासिका को अंगूठे एवं बायी दें। श्वास न ले, न निकाले यानि नासिका को अनामिका से बंद कुम्भक प्राणायाम करें। सहजतया करनी चाहिए। जितने समय तक हो सके, प्र.648.प्रणव प्राणायाम कैसे साधा जाता करें, तत्पश्चात् रेचक प्राणायाम करें। दाहिनी नासिका से शनैः-शनैः वायु उ. सीधे खड़े हो जाये। नासिका द्वारा का रेचन इस प्रकार करें कि शरीर को श्वास लेते दोनों हाथों को ऊपर वहाँ इसमें किसी प्रकार का जोर न पड़े। तक उठाते जाओ, जहाँ तक दोनों रेचन के द्वारा प्राणवायु पूरी तरह हथेलियाँ एक दूसरे का स्पर्श न करें। निकल जाने पर पुनः उसी (दाहिनी) इसके साथ-साथ ही पाँव के पीछे का नासिका से प्राणवायु ग्रहण करें। भाग यानि एडी ऊपर उठाये तथा प्र.647.पूरक आदि प्राणायाम करते समय सारा शरीर पाँवों के अग्र भाग पर क्या सावधानी रखे? टिका दे। फिर कुंभक करें। उ. 1. इनमें मुँह खुला न रहे। सहजतया जितनी देर तक कर सके, 2. श्वास (लेना) व उच्छ्वास करें। तत्पश्चात्, श्वास छोड़ते हुए (निकालना) में आवाज नहीं होनी हथेलियों को नीचे लाकर पूर्ववत् चाहिए। स्थिति में आ जाये। 3. इस अभ्यास से प्राणों पर नियंत्रण इससे स्मरण शक्ति बढती है एवं होता है और मन निश्चिन्त होता शरीर ऊर्जापूर्ण बनता है। प्र.649.थकान को प्राणायाम के द्वारा 4. इस प्रक्रिया में श्वास भरने, छोड़ने कैसे दूर किया जाता है? एवं रोकने का अधिकतम पुरूषार्थ उ. शव की भाँति शांतिपूर्वक सीधे लेट करना चाहिये। जाये। आँखें बंद। पूरा शरीर शिथिल 5. रेचक में जल्दबाजी न करें अन्यथा कर लो। कहीं खिंचाव-तनाव न रहे। **-*-*--*-*-*-*-*-*--*-*-294__ *-28-%%*-*-*-*-*-*-*-******
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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