SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राणायाम प्र.644.प्राणायाम किसे कहते है? परिपूर्ण घड़ा शान्त एवं स्थिर होता उ. प्राणों को नियंत्रित तथा नियमित है, उसी प्रकार शरीर में प्राणवायु करने की प्रक्रिया को प्राणायाम कहते भर देने से वह शान्त, निष्प्रकंप एवं है। सन्तुलित हो जाता है और प्राणायाम से पांच इन्द्रिय बल प्राण, प्राणवायु शरीर में स्थिर हो जाती तीन योग प्राण, श्वासोच्छवास एवं है। इस प्रकार वायुरूपी पानी से आयुष्य, इन दस प्राणों का नियंता भरे कुम्भ (घड़े) की उपमा से बनता है। न देखना, न सुनना, न उपमित इस प्राणायाम को कुम्भक बोलना, न सोचना, न करना, यह कहा जाता है। इसके आठ भेद आत्म शक्ति प्राणायाम के द्वारा प्रकट कहे गये हैं। होती है, उसमें वृद्धि भी की जा सकती 4. शान्ति- ज्योति प्रकाश करना। 5. समता - ध्येय के स्वरूप में सूक्ष्म प्र.645.प्राणायाम कितने प्रकार के कहे .. व गहन रूप से एकाकार होना। गयें हैं? 6. एकता - आत्मा और गुणों में उ. योग के आठ भेदों में एक भेद है एकत्व का भाव। ___.. प्राणायाम / इसके सात भेद कहे गये 7. लीन भाव - आत्मा के शुद्ध स्वरूप में लीन होना। 1. पूरक - नासिका के द्वारा वायु प्र.646.प्राणायाम किस प्रकार करें? / खींचकर छाती, फेफड़े, पेट उ. सर्वप्रथम मेरूदण्ड को सीधा करके आदि को भरना पूरक कहलाता है। पद्मासन अथवा वज्रासन में बैठो 2. रेचक - श्वास के द्वारा भरी हुई तथा दोनों हाथों को घुटनों पर प्राणवायु को प्रश्वास के द्वारा स्थापित करो। मुँह बंद रखो। आँखें नासिका से बाहर निकालना रेचक चाहे खुली हो चाहे बंद हो, परन्तु कहलाता है। सहज हो। 3. कुम्भक - जिस प्रकार पानी से दाहिनी नासिका को अंगूठे से बंद **** * ******* 293 *** * ****
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy