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________________ करनी चाहिए। अन्यथा वे स्वयं की गुरूमुख से मंत्र प्राप्त कर्ता साधक कुल्हाड़ी से स्वयं के पांवों पर वार हो सकता है। करने जैसा हास्यास्पद कार्य कर 3. नियम-ब्रह्मचर्य पालन, अभक्ष्य बैठते हैं। व अनन्तकाय वर्जन, अधिकतम मौन, प्र.637. नवकार आदि मंत्र साधना की क्लेश कषाय से बचना, भूमिशयन पूर्व भूमिका समझाईये। करना। उ. 1. स्थान - मंत्र साधना सिद्धि हेतु नियमित दिशा, समय, स्थान, मन्दिर, उपाश्रय, तीर्थभूमि, नदी संख्या, आसन में जाप करना। तट एवं पर्वत का उच्च स्थान, ये पूर्वोक्त जाप विधि में अन्य निर्देशों उत्तम स्थान माने गये हैं। यदि इस प्रकार की अनुकूलता न हो को समझकर उनका पालन करना। तो अलग से कक्ष पसंद करना प्र.638. नवकार मंत्र साधना की विधि करना चाहिए पर ध्यान रहे- कक्ष बताईये। ऐसा हो जहाँ वाय-प्रकाश पर्याप्त उ. पूर्व में बताये गये संकेतों के अनुसार रूप से प्रवेश कर सके एवं शोरगुल पूर्व भूमिका तैयार करें। से सर्वथा मुक्त हो। प्रथम उपधान (अढारिया) किया 2. पात्रता - मानसिक और हुआ हो तो यह साधना शीघ्र फलित शारीरिक बल से परिपूर्ण होना होती है क्योंकि इससे व्यक्ति मन में उद्देश्य पवित्रता व नवकार मंत्र को बोलने की योग्यता स्पष्टता के साथ हो पर कषाय, को प्राप्त करता है। राग व द्वेष की मलिनता न हो। गुरू प्रदत्त शुभ मुहूर्त में आराधना धर्म में श्रद्धावान्, उत्सुक, का शुभारंभ करें। विघ्नजयी, परिमित सात्विक भोजी, आराधना के दिनों में यथाशक्ति प्रसन्न, करूणावान्, परोपकारी, उपवास आदि तप करें | आयम्बिल दयालु, मन को स्थिर करने वाला, तप को महामंगलकारी कहा गया धीर, गंभीर, सत्यवादी, नवकार पर परम श्रद्धावान्, सुदेव-गुरू की तप से त्रियोग की शुद्धि होती है। भक्ति एवं सेवा करने वाला, कषाय और शारीरिक मल नष्ट
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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