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________________ मंत्र कहा जाता है। 3. जिन ध्वनियों के परस्पर संयोजन एंव . उच्चारण से अलौकिक ज्योति/प्रभा प्रकट होती है, उसे मंत्र कहा जाता है। प्र.636. मंत्र साधना की कितनी विधियाँ शास्त्रों में वर्णित हैं? मंत्र साधना के लक्ष्य को केन्द्र में रखते हुए पूर्वाचार्यों ने तीन विधियों का कथन किया है। 1. उत्कृष्ट विधि - आत्म शान्ति, कर्म निर्जरा, संवर साधना एवं मोक्षरूप महान् फल की उपलब्धि को लक्ष्य में रखकर की जाने वाली विधि उत्कृष्ट कही गयी है। 2. मध्यम विधि - मानसिक व्यथा एवं चित्त की व्याकुलता को मिटाकर आराधना पथगामिनी विधि मध्यम विधि है। शास्त्रकारों ने उदाहरणपूर्वक इस विधि का उल्लेख इस प्रकार किया है, यथा- कोई दीक्षित होना चाहता है परन्तु परिवारिक प्रतिकूलता, शारीरिक रोग, मानसिक अशान्ति एवं विविध उत्तरदायित्वों से बंधा/घिरा संवेगी, निर्वेदी मुमुक्षु **************** प्रव्रज्या पथ को अंगीकार करने में अक्षम है, तब वह उन सभी बाधाओं/चिन्ताओं से मुक्त होकर विघ्नजयी बनने के लिये मंत्र साधना करता है, वह मध्यम विधि है। 3. जघन्य विधि - यह विधि भवाभिनंदी (संसारार्थी) एवं पुद्गल विलासी जीवों के द्वारा की जाती है। धन, सत्ता, सौन्दर्य, देवगति, यश, सम्मान हेतु की जाने वाली मंत्र विधि जघन्य है। यद्यपि मंत्र की शक्ति शाश्वत सत्ता, सौन्दर्य और शान्ति प्रदायक है परन्तु जो व्यक्ति पुद्गलों से प्रभावित होकर उनकी कामना में अटक कर/भटककर रह जाते हैं, वे पारसमणि-चिन्तामणि दातार को पाकर भी कंकर व कांच की याचना का मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं और जघन्य, अक्षम्य उद्देश्य की सिद्धि में लगे रहते हैं। . अन्ततः पद, पदार्थ छूट ही जाते हैं और शान्ति और साधना दिवास्वप्न की भांति दूर रह जाते हैं, अतः सुज्ञ एवं अप्रमत्तचेता को मंत्र शक्ति का माहात्म्य व रहस्य जानकर संयम, मोक्ष रूप महान् अर्थ की ही कामना **************** 286
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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