________________ मैं शान्ति की साक्षात् प्रतिमा हूँ। मेरा ऊर्जा मैत्री और प्रीति से पवित्र हो रही मन, मेरी आत्मा, सम्पूर्ण वातावरण है। सर्वत्र प्रीति का उद्घोष हो रहा शान्त है। कहीं कोई अशांति की लहर है। मेरे वैर-विकार नष्ट हो रहे हैं। नहीं है। अमंगल समाप्त हो रहा है। कलह, ध्यान के प्रारंभ में प्रतिदिन पाँच मिनट कामना और क्रोध शान्त-प्रशान्त हो से दस मिनट इसका ध्यान करें। यह रहे हैं। मेरी आत्मा में विश्व-कल्याण शांतिपाठ वाणी, वर्तन और विचारों की उदात्त भावनाएँ नृत्य कर रही हैं। को परम शांत व सन्तुलित बनाता मेरे हृदय से उठती मंगल, सुख, शान्ति और आरोग्य की तरंगे प्र.630.ध्यान की पवित्रता में विश्व वातावरण में प्रसारित हो रही हैं। सभी कल्याण की कामना कैसे करें? सुखी हो, सम्पूर्ण विश्व दुःख और शान्ति धारा के इस पाठ के पश्चात् शोक से मुक्त बने, हर व्यक्ति अहिंसा, विश्व मैत्री एवं जग कल्याण का ध्यान शान्ति और प्रेम का आचरण करें। ये करें मंगल विचार मैं विश्व के कोने-कोने मित्ती मे सव्वभुएसू-'समस्त जीवों में भेज रहा हूँ। इन विचारों में डूबकी से मेरी मैत्री है। लगाते हुए इतने एकाग्र बनो कि स्वयं वेरं मज्झ न केणइ-किसी से भी को भूल जाओ / प्रतिदिन पांच मिनट मेरा वैर नहीं है। तक विश्व-मंगल का ध्यान करना प्राणी मात्र से मेरा मैत्री भाव है। हर चाहिये। इससे विचार-शुद्धि होती जीव के प्रति मेरी प्रीति है। है। ज्ञानावरणीय एवं मोहनीय कर्म का मैं किसी का विरोध नहीं करता, किसी विशेष रूप से क्षय होता है। से द्वेष नहीं करता। किसी की प्रगति प्र.631 पंच परमेष्ठि का ध्यान कैसे करें? से मुझे ईर्ष्या नहीं है। पंच परमेष्ठि के ध्यान में सर्व प्रथम मैं तो बस इतना ही जानता हूँ कि शान्ति–पाठ का ध्यान करें। प्राणी मात्र मेरा अपना है। मैं सभी का तत्पश्चात् चिन्तन करेंहितैषी हूँ। परमात्मा महावीर के समवसरण में आ मेरा रोम-रोम, मेरा हृदय, मेरी समस्त गया हूँ। फिर अन्तरात्मा में डूबकी