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________________ ध्यान का विधान प्र.629.ध्यान का प्रारम्भ कैसे करें? उ. पद्मासन, अर्द्धपद्मासन आदि किसी भी आसन में मेरू दण्ड को सीधा करके दोनों घुटनों पर हाथों को ज्ञान-मुद्रा में स्थापित करके बैठो। आँखों को सहज बंद करके दीवार का सहारा लिये बिना स्थिरतापूर्वक बैठ जाओ। शरीर में कहीं भी खिंचाव या तनाव न हो। अंगों को ज्यादा न खींचो, न ढीला छोड़ो। मस्तक व सीने को एक सीध में कर लो। उत्तर, पूर्व अथवा दोनों के मध्य स्थित ईशान कोण के सम्मुख बैठो। वस्त्र ऐसे हो कि शरीर में कहीं कोई खिंचाव या तकलीफ न हो वरना एकाग्रचित्त नहीं हो पाओगे। यदि वस्त्र, आसन श्वेत हो तो अति-उत्तम। ध्यान रहे शरीर के किसी भी अंग में कोई चंचलता न हो। न पलकें झपके, न होंठ फड़के। मक्खी बैठे, मच्छर काटे, किसी भी अंग पर खुजलाहट चले, मन में घबराहट हो, तब भी मन ************ 279 स्थिर हो। मन उठने को करें या इधर-उधर भागने लगे तो तुरन्त उसे पकड़ लो। प्रारंभ में ये सब बाधाएँ आयेगी पर परवाह न करो। हार कर, मैदान छोड़कर भागो मत। ये सब तुम्हारी समत्व एवं एकत्व की परीक्षा लेने को उपस्थित हुई हैं। अब धीरे-धीरे अन्तर्मुखी होना शुरू करो। मन और तन की गतिविधियों से ध्यान को हटाकर स्वयं से कहोमेरा दृढ़ संकल्प है कि जब तक ध्यान पूर्ण नहीं होगा, तब तक मैं न हिलूंगा, न चलूंगा, न बोलूंगा। मैं मन और शरीर का नियंता हूँ। मैं जो भी आदेश दूंगा, वह उसे मानना होगा। इसका पुनः पुनः आवर्तन करो। जब शरीर सहज हो जाये तब मानसिक ध्यान शुरू करेंमैं शांत-प्रशान्त हो रहा हूँ। मेरे चारों तरफ शान्ति ही शान्ति बिखरी हुई है। मेरे मन और विचारों में शान्ति ही शान्ति है। अशान्ति न मेरे दिमाग में है, न दिल में है। ****************
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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