________________ लगाकर ध्यान करो–ओ अरिहंत प्रभो! ओ डूबती नैया के खेवनहार | ओ भव्यजनों के उद्धारक! मेरे हृदय में आओ। मेरी आँखों में छा जाओ। समस्त जीवों में शासन का प्रशस्त राग भर दो। क्रमशः ध्यान में आगे बढ़ते रहो। तत्पश्चात् गुणों का ध्यान धरो। ओ दयालु अरिहंत! आपकी कृपा से ही मैंने शासन पाया है। अब मेरा रोम-रोम अरिहंतमय हो गया है। मेरे मन में प्रभु भक्ति और प्रीति के फूल खिलने लगे हैं। मेरी सांसों में आपकी खुश्बू छाने लगी है, मेरी आँखों में आप बस गये हो। मेरी आत्मा और आपकी आत्मा एकरूप एकाकार हो गयी है। सारे भेद मिट गये हैं। अब मुझे छोड़ के न जाओ / मुझे अपनी शरण में लो। ओह! मेरे जन्मों जन्म के पाप नष्ट हो रहे है, मैं पवित्र हो रहा हूँ, शुद्ध हो रहा हूँ, विशुद्ध रहा हूँ, मेरे अन्तर में साधना के हजारों दीप जल रहे हैं, मेरा पोर-पोर उसकी रोशनी में भीग गया रूप अरिहंतमय हो गया है। अरिहंत की खुश्बू से मेरी दुर्गंध नष्ट हो रही है। एक साथ सहस्र फूल मेरी आत्मा के धरातल पर खिल उठे हैं। उनमें से वीतरागता की, ज्ञान और ध्यान की, दया और करूणा की सुरभि उठने लगी है। ओ प्रभो! सभी जीवों में ऐसी ही करूणा भरो। मैत्री का भाव जगाओ। मुझ पर गुण-गांभीर्य-माधुर्य से युक्त हजारों-लाखों अमृत मेघ बरस रहे हैं और मेरे भव-भव की कालिमा धुल रही है। मेरा मान, मेरा गर्व पिघल कर बहने लगा है। मोह-मेरू खण्ड खण्ड होकर नष्ट हो गया है। इस ध्यान में समवसरण आदि का ध्यान किया जा सकता है। इस प्रकार पाँच से सात मिनट तक ध्यान करें। (ii)सिद्ध ध्यान- सिद्ध परमात्मा के आठ गुणों का एवं उनके स्वरूप का ध्यान करें। (ii)आचार्य ध्यान- आचार्य के छत्तीस गुणों का एवं उनकी महिमा का ध्यान करें। (iv)उपाध्याय ध्यान- उपाध्याय के है। अब कषाय की परतें उतरने लगी हैं, मोह की दीवारें गिरने लगी हैं, मेरा