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________________ बनने VDEO संचार, खिन्न मन में प्रसन्नता पोरवा, दूसरा मध्यमा के मध्य * एवं आत्मा में अनिर्वचनीय का, तीसरा मध्यमा के नीचे का, आनन्द की अनुभूति होती है। चौथा अनामिका के नीचे का, 2. इस जाप से वातावरण पवित्र पांचवां, छट्ठा, सातवां ___ एवं निर्मल बनता है। कनिष्ठिका के क्रमशः 3. इस जाप से क्षुद्र व्यंतर देव नीचे मध्य व ऊपर का पोरवा, ___पलायन कर जाते हैं। आठवां व नौवां क्रमशः अनामिका व 4. चित्त की एकाग्रता में यह मध्यमा के ऊपर का पोरवा तथा ___ महत्त्वपूर्ण आलम्बन है। दसवां, ग्यारहवां व बारहवां तर्जनी विधि- इसमें प्रथम मध्यमा के मध्य का क्रमशः ऊपर, मध्य व नीचे का का पोरवा, दूसरा पोरवा है। इस प्रकार नौ बार गिनने अनामिका के मध्य का से एक माला पूर्ण होती है। पोरवा, तीसरा अनामिका प्र.625. ही कार आवर्त की प्रक्रिया के ऊपर का पोरबा, चौथा बताईये। मध्यमा के ऊपर का पोरवा, उ उ. स्वरूपपांचवां तर्जनी के ऊपर का ह्रीं कल्याण वाचक है। इसे पोरवा, छट्ठा तर्जनी के मध्य का माया बीज, त्रैलोक्य बीज एवं पोरवा, सातवां तर्जनी के परम तत्त्वबीज भी कहा जाता नीचे का पोरवा, आठवां मध्यमा के नीचे का पोरवा, नौवां अनामिका के लाभ- इस आवर्त जाप से सुख, नीचे का पोरवा, दसवां कनिष्ठिका के नीचे का पोरवा , ग्यारहवां समृद्धि की प्राप्ति एवं विघ्न, कनिष्ठिका के मध्य का पोरवा, अन्तराय की समाप्ति होती है। बारहवां कनिष्ठिका के ऊपर का विधि- ही कार आवर्त की गिनती पोरवा, इस तरह नौ बार गिनने में इस प्रकार है। तर्जनी एक माला पूरी होती है। के ऊपर से चलना | ऊँकार दक्षिणावर्त की अन्य है। मध्यमा, अनामिका, प्रक्रिया इस प्रकार है कनिष्ठिका तक क्रमशः पहला अनामिका के मध्य का ऊपर के चार हुए।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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