SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ o पांचवां कनिष्ठिका का मध्य, छट्ठा अनामिका का मध्य, सातवां मध्यमा का मध्य, आठवां तर्जनी का मध्य, नौवां तर्जनी के नीचे,दसवां मध्यमा के नीचे, ग्यारहवां अनामिका के नीचे और बारहवां कनिष्ठिका के नीचे, इस तरह गिनती करने से ही का निर्माण होने इसे ही कार आवर्त कहा जाता है। नौ बार गिनने से माला पूरी होती है। प्र.626. नवपद (नवकार) आवर्त विधि बताओ। उ. महिमा- नवकार का प्रभाव अचिन्त्य अद्भुत है। यह मंत्र शक्ति, ऊर्जा, आनन्द और सिद्धि का भण्डार है। नवकार के जाप से ऋद्धि व समृद्धि मे वृद्धि होती है। ऊँ, हाँ, ही क्लीं, क्लू, श्री, वीं, फुट, हैं, वषट्, ल्वयूं आदि बीजाक्षरों की उत्पत्ति प्रधानतः नवकार मंत्र से हुई है क्योंकि मातृका ध्वनियाँ इस मंत्र से उत्पन्न हुई हैं। ये बीजाक्षर अन्तःकरण और प्रवृत्ति की शुद्धि के महत्वपूर्ण माध्यम है जिनके समुचित संयोजन, विधि विधान एवं जाप से आत्मशक्ति को जागृत, . देवताओं को आकर्षित एवं आसुरी शक्तियों को समाप्त किया जा सकता है। यहाँ तक कि सर्वोतम मोक्ष पद को भी प्राप्त किया जा सकता है। विधि- श्री नवकार मंत्र का दूसरा नाम नवपद है। इसका जाप नमो अरिहंताणं से प्रारम्भ कर पढमं हवई मंगलं तक नव पदों में किया जाता है। इसका एक-एक पद क्रमशः एक-एक पोरवे पर गिना जाता है। प्रारम्भ मध्यमा के मध्य पोरवे से करें। दूसरा मध्यमा के ऊपर का पोरवा, तीसरा तर्जनी के मध्य का पोरवा, चौथा मध्यमा के नीचे का पोरवा, पांचवां अनामिका के मध्य का पोरवा, छट्ठा तर्जनी के ऊपर का पोरवा, सातवां तर्जनी के नीचे का पोरवा, आठवां अनामिका के नीचे का पोरवा, नौवां अनामिका के ऊपर का पोरवा। इस तरह नवपदों को बारह दफा गिनने में एक माला पूरी होती है। प्र.627. नवपद (सिद्धचक्र) आवर्त की प्रक्रिया को समझाईये। उ. स्वरूप- सिद्धचक्र पद का. दूसरा नाम नवपद भी है। पंचपरमेष्ठी,
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy