________________ पांचवां कनिष्ठिका के मध्य का, का, छट्ठा अनामिका के मध्य छट्ठा कनिष्ठिका के ऊपर का, का, सातवां अनामिका के ऊपर का, सातवां अनामिका के ऊपर का, आठवां मध्यमा के ऊपर का, नौवां आठवां मध्यमा के ऊपर का, नौवां मध्यमा के मध्य का, इस तरह बारह तर्जनी के ऊपर का, दसवां तर्जनी बार गिनने से एक माला पूरी के मध्य का, ग्यारहवां तर्जनी के होती है। इसे नंद्यावर्त कहते है। नीचे का, बारहवां मध्यमा के नीचे प्र.624. ऊँकार दक्षिणावर्त जाप किस का। इस तरह नौ दफा गिनने से प्रकार किया जाता है? एक माला पूरी हो जाती है। इस उ. स्वरूपप्रकार गिनने से शंख आकृति का 1. ॐ की अपार महिमा कही गयी निर्माण होता है, अतः इस आवर्त का है। इसे प्रणवाक्षर भी कहा जाता नाम शंखावर्त है। प्र.623. नंद्यावर्त जाप विधान को 2. इसमें पंचपरमेष्ठी के आद्य समझाईये। अक्षरों को मिलाने से ओम बना उ. लाभ है, अतः ऊँकार में पंच परमेष्ठी 1. नंदी अर्थात मंगलकारी, का समावेश होने से इसकी अकुशल एवं अशाता निवारी। महती महत्ता * एवं अद्भुत यह मन, तन और जीवन में चमत्कार है। सर्वत्र मंगल की वर्षा करता है। 3. 'ऊँ' यह ब्रह्म,, सुख एवं आत्म 2. यह जाप तुष्टि, सौम्यता तथा वाचक है। ध्रुव व शाश्वत होने आदर प्रदायक है। से दिव्य शक्तियों का भण्डार है। विधि- इस आवर्त में दाहिने हाथ 4. यह काम बीज, प्रदीप बीज, की तर्जनी अंगुली के ऊपर के पोरवे विनय बीज, पंचपरमेष्ठी बीज से शुरुआत होती है, दूसरा एवं तेजो बीज है। तर्जनी के मध्य का, तीसरा लाभतर्जनी के नीचे का, चौथा 1. इसका उच्च व मधुर ध्वनि से का मध्यमा के नीचे का, प्रतिदिन उच्चारण करने से पांचवां अनामिका के नीचे अस्वस्थ शरीर में स्वस्थता का **** 274 *** **********