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________________ 5. कनिष्ठिका - सबसे छोटी का, आठवां तर्जनी के नीचे का,नौवां - अंगुली। मध्यमा के नीचे का, दसवां प्र.620. हस्तांगुली जाप कितने प्रकार अनामिका के नीचे का, ग्यारहवां के कहे गये हैं? अनामिका के मध्य का, बारहवां उ. हस्तांगुली जाप के अनेक भेद मध्यमा के मध्य का, ऐसे नौ बार शास्त्रों में वर्णित है यथा आवर्त गिनने से एक पूरी माला होती है। जाप, शंखावर्त जाप, नंद्यावर्त, प्र.622. शंखावर्त जाप की विधि बताईये। ऊँकार दक्षिणावर्त, ऊँकार वामावर्त, उ. लाभही कार आवर्त, नवपद आवर्त, 1. शंख जिस प्रकार शुक्ल, शुभ्र सिद्धावर्त आदि। ओर शुभ माना गया है, उसी प्र.621.आवर्त जाप को बताएँ। प्रकार यह जाप मानसिक उ. लाभ - . कालुष्य, ऊहापोह और व्यग्रता 1. आवर्त जाप शान्ति, तुष्टि एवं को समाप्त कर मन-मानस में पुष्टि प्रदायक है। . नवस्फूर्ति एंव ताजगी का संचार 2. इस जाप के प्रभाव से दुष्ट देव करता है। नहीं सताते। यह जाप भूत-प्रेत 2. यह आवर्त जाप पाप, ताप एवं . भय निवारक कहा गया है। संताप निवारक एवं मनोवांछित3. मनोकामनाएँ शीघ्र फलित होती पूरक कहा गया है। विधि- यह आवर्त अपने दाहिने 4. सुख एवं धैर्य की प्राप्ति होती है। हाथ की अंगुलियों पर ही गिना विधि- दाहिने हाथ की अंगुलियों जाता है। इसकी में से कनिष्ठिका अंगुली के नीचे शुरुआत मध्यमा पोरवे से शुरूआत करें, जिससे अंगुली के मध्य के कनिष्ठिका के तीनों पोरवें, पोरवे से होती चौथा अनामिका के ऊपर है। दूसरा अनामिका का,पांचवां मध्यमा के ऊपर के मध्य का, का,छट्ठा तर्जनी के ऊपर तीसरा अनामिका के नीचे का, का, सातवां तर्जनी के मध्य चौथा कनिष्ठिका के नीचे का, ** * 273 **** ***** -10 O HIND BE
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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