________________ GRO.C SAR COOLA GROR COM RA.ORE जैनत्व के प्रतीक (1) पारस्परिक मिलन के अवसर पर 'जय जिनेन्द्र' अथवा प्रणाम' से अभिवादन करना। (2) 'श्री महावीराय नमः' से पत्र का प्रारम्भ एवं 'जय जिनेन्द्र' से बहुमान-अभिवादन। (3) गृह-सज्जा में जैन जीवन शैली के बोधक यथा अरिहंत, आचार्य आदि के चित्र, शो-केस में पातरा, 'तरपणी, ओघा आदि मुनि-प्रतीक चिह्न, दुकान-मकान के द्वार पर अष्ट मंगल, चौदह स्वप्न की सजावट अथवा जय जिनेन्द्र, नवकार मंत्र, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्, जैनम् जयति शासनम् आदि का आलेखन / (4) जनगणना में अपने नाम के साथ 'जैन' शब्द का प्रयोग एवं धर्म के कॉलम में 'जैन' लिखने में जागरूकता / (5) जन्म, विवाह, उत्सव, मृत्यु आदि में जैन संस्कार विधि का प्रयोग करना। इसके साथ दीपावली आदि में नये बहीखातों के प्रयोग में जैन संस्कार विधि का प्रयोग | (6) जैन विधि से दीपावली आदि त्यौहारों को मनाना। (7) जैन पर्व एवं विशेष आयोजन पर जैनत्व के प्रतीक पंचरंगी जैन ध्वज आदि का उपयोग करना / (8) सरकारी दस्तावेज, रेल–वायुयान आदि टिकट, कॉलेज-प्रवेश फार्म आदि में नाम के साथ 'जैन' शब्द का उल्लेख करना / यदि आप अपने नाम के स्वगोत्र का भी उल्लेख करना चाहते हैं तो नाम के पहले जैन और नाम के बाद गोत्र को अंकित करना। (9) शादी, गृह-प्रवेश, दुकान की ओपनिंग आदि की आमन्त्रण पत्रिका में सबसे पहले परमात्मा का नाम अंकित करना / (10) दुकान की Letter-Pad पर परमात्मा, दादा गुरुदेव आदि का नाम अंकित करना। (11) दुकान के देव-पूजा स्थान में अथवा अन्य स्थान पर परमात्मा, जैन तीर्थ आदि के फोटो लगाना। (12) ललाट पर जिनाज्ञा शिरोधार्य करने के प्रतीक रुप चन्दन-केसर का तिलक लगाना। (13) अपनी चार पहिया गाड़ी में प्रभु या गुरुदेव का फोटो या मूर्ति लगाना / उसके आगे-पीछे कहीं भी अरिहंत-गुरु का नामांकन करना अथवा जैनम्, जय जिनेन्द्र, जय महावीर, जय दादा गुरुदेव आदि लिखवाना /