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________________ जैन संकल्प परिपत्र G GORANGILOSO (1) मैं अरिहंत देव, पंचमहाव्रती सुगुरु एवं केवलीभाषित धर्म / (जिन धर्म) के प्रति सदैव श्रद्धावान् रहूंगा / (2) मुझे आत्मा, कर्म एवं मोक्ष तत्त्व में परिपूर्ण श्रद्धा है, अतः स्वकृत कर्मों का उत्तरदायी भी मैं स्वयं ही हूँ / मैं कर्म मुक्ति के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहूंगा / (3) मैं आहार शुद्धि के प्रयोगों में विश्वास करता हूँ, अतः मद्य, मांस, उत्तेजनावर्द्धक कन्दमूल, दुर्गतिकारक बीडी, सिगरेट, गुटखा, तम्बाकू, गांजा, अफीम, चरस आदि मादक पदार्थों का उपयोग नहीं करूंगा। (4) प्रतिवर्ष संवत्सरी महापर्व की साधना करता हुआ जीव मात्र के प्रति करुणा, मैत्री, समभाव और क्षमा से अपनी आत्मा को भावित करूंगा। (5) जिनशासन की उन्नति, प्रगति हेतु सदैव प्रयत्नशील रहूंगा / (6) साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविका की निंदा, टीका-टिप्पणी नहीं करूंगा। (7) मेरे जिस कृत्य से जिनशासन के गौरव में कमी हो, धर्म कलंकित हो, वैसा कार्य कदापि नहीं करूंगा। (8) धर्म-संघ से निष्कासित व्यक्तियों को प्रश्रय नहीं दूंगा / (9) शासन की अखण्डता, आज्ञा-अनुशासना एवं सिद्धान्तों के प्रति सदैव समर्पित रहूंगा। (10) जिनाज्ञानुसार खान-पान, आचार-विचार, वेश-परिवेश की शुद्धि पर पूरा ध्यान दूंगा। (11) व्यापार में प्रामाणिकता, नीतिमत्ता एवं न्याय को स्थान दूंगा। अनीति, शोषण, कालाबाजारी, फरेब, झूठ, अन्याय, रिश्वतखोरी, मिलावट का न आचरण करूंगा, न उसे प्रोत्साहन दूंगा। (12) किसी भी साधु-साध्वी अथवा श्रावक-श्राविका में दोष दर्शन होने पर उसका बाजार, रिश्तेदार आदि में प्रचार-प्रसार नहीं करूंगा। बहुत संभव है कि दृष्टिभ्रम के कारण भी मुझे इस प्रकार लगा हो / अतः गुरुदेवों के प्रति श्रद्धा, बहुमान और अहोभाव के संरक्षण-संवर्धन के लिये जरुरी लगने पर उनसे एकान्त में स्पष्टीकरण करूंगा। (13) मन-मस्तिष्क और आत्मा की शुद्धि के लिये थियेटर, टेलीविजन, मोबाइल, इन्टरनेट आदि पर गंदे, अभद्र, अश्लील दृश्यों को देखना व संगीत सुनना मेरे लिये सर्वथा निषिद्ध है।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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