________________ हुआ, तब साधना के फलस्वरूप मुँहपत्ति नहीं जली / (13) श्री समयसुन्दरोपाध्याय - आठ अक्षरों के आठ लाख से अधिक अर्थ करने वाले सत्यपुर रत्न, कविकुल किरीट के नाम से प्रसिद्ध श्री समयसुन्दरोपाध्याय रचित अष्टलक्षी, दशवैकालिक वृत्ति, समाचारी शतक, विचार शतक, विशेष शतक इत्यादि मौलिक ग्रंथों में उनका संस्कृत, न्याय, प्राकृत पर पूर्ण अधिकार और पाण्डित्य स्वतः प्रकट होता है। पद्मावती आलोयणा, शत्रुजय रास एवं भावपूर्ण सैंकड़ों स्तवन, सज्झाय की रचना कर साहित्य व काव्य जगत को आबाद किया। अहमदाबाद में आप समाधिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त हुए। (14) श्रीमद्देवचन्द्र - आगामादि के परम ज्ञाता श्रीमद् देवचन्द्रजी ने चौबीसी में द्रव्यानुयोग का दिव्यप्रयोग किया है। आपका ज्ञान एक पूर्व प्रमाण था / वर्तमान में आप महाविदेह क्षेत्र में केवलज्ञानी के रूप में विचरण कर रहे हैं, ऐसी अनुश्रुति है। ************** * 259 आपने जिनशासन में प्रथम स्नात्र पूजा की रचना की। जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज की सुदृढ पेढी आनंदजी कल्याणजी की स्थापना भी आपके द्वारा ही हुई। ब्रह्मचर्य की दिव्य साधना के कारण से आपका वीर्य ऊर्ध्वगामी होकर ललाट में मणि के रूप में स्थापित हो गया। आपने गहन अध्ययन पूर्वक विचारसार आदि मौलिक ग्रन्थों का सर्जन किया। (15) श्रीमद् आनंदघन - आनंदघन यानि साधना क्षेत्र के बेनमून नक्षत्र / आप अधिकांशतः गुफाओं में एकान्त में साधना करते थे। आपकी लघुनीति (पेशाब) में इतनी शक्ति थी कि पाषाण भी स्वर्णमय हो जाता था। आप खरतरगच्छ की परम्परा में दीक्षित होकर मुनि लाभानंद बने परन्तु ख्याति आनन्दघन के रूप में हुई। आपश्री के द्वारा रचित प्रभु भक्ति से सराबोर जिनेन्द्र चौबीसी सर्वत्र प्रसिद्ध है। (16) गणनायक सुखसागरजी - यद्यपि आपका जन्म सरसा में हुआ था परन्तु व्यवसायार्थ आप ******* *******