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________________ से प्रभावित था। आपश्री ने अपनी अगाध प्रतिभा के द्वारा विविध तीर्थ कल्प, विधिमार्ग प्रपा आदि महत्वपूर्ण शास्त्रों की रचना की। (10) श्री जिनभद्रसूरि- आचार्य जिनभद्रसूरि का श्रुत-संरक्षण के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान रहा है। आपने जैसलमेर, लिम्बड़ी, खम्भात, पाटण, आशापल्ली, नागौर, देवगिरि आदि अनेक स्थानों पर ज्ञान भण्डार स्थापित किये। अपने . जीवनकाल में आपने अनेक प्राचीन, अलभ्य एवं महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखवाकर सुरक्षित किये। (11) श्री जिनमाणिक्यसूरि - यद्यपि आचार्यवर यति परम्परा में दीक्षित थे परन्तु शास्त्राध्ययन करने के बाद जब मूल धर्म को जाना तब क्रियोद्धार का निर्णय करके क्रियान्वित करने हेतु कुशल-धाम देराउर पधारे! चरण वन्दना करके आते समय तृषा का महान् परीषह उत्पन्न हुआ | श्रीसंघ ने रात्रि में जल ग्रहण करने का निवेदन किया परन्तु आप तनिक भी विचलित नहीं हुए और उसी रात्रि में पिपासा परीषह को समतापूर्वक **************** 258 सहन करते हुए अनशनपूर्वक सुरलोक वासी बने। (12) अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरि- आचार्य श्री जिनमाणिक्यसूरि के शिष्य शासन सम्राट् श्री जिनचन्द्रसूरि ने अपने गुरुदेव का स्वप्न साकार करते हुए शिथिलाचार पर प्रखर प्रहार किया। आपके संयम-तप के प्रभाव से सम्राट अकबर ने कुल छह माह पर्यन्त अहिंसा के जो फरमान जारी किये, वे आज भी जैसलमेर के जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार में उपलब्ध हैं। आपने यति परम्परा पर अनुशासन और मर्यादा का बुलडोजर . चलाया। 'नवांगी वृत्तिकार अभयदेवसूरि खरतरगच्छ में हुए' इसका पचास से अधिक गच्छों के आचार्यों के हस्ताक्षर से युक्त सम्मति पत्र आज भी ज्ञान भण्डार में उपलब्ध है। मृत गाय को जीवित करना, अमावस को चाँद उगाना आदि अनेक चमत्कार आपके तपोबल के सहज परिणाम थे। बिलाड़ा में आपका आश्विन वदि अमावस्या को .जब स्वर्गवास
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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