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________________ प्रतिष्ठित होने वाले द्वितीय दादा गुरुदेव आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि का साधना बल गजब का था। आप आत्म साधना और ज्ञान साधना के पर्याय थे। इस दिव्य साधना के परिणामस्वरूप ही आपका वीर्य एवं आन्तरिक शक्तियाँ ऊर्ध्वगामी होकर मणि के रूप में ललाट में स्थापित हो गयी, इसी कारण आप मणिधारी के रूप में सुप्रसिद्ध है। दादा जिनदत्तसूरि के द्वारा दिल्ली जाने का निषेध करने पर भी योगानुयोग आप दिल्ली पधारे और भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी को 26 वर्ष की अल्पायु में ही स्वर्गवास को प्राप्त हो गये। दिव्य ज्ञान बल से अपना अन्तिम काल जानकर सूरिवर ने . * संघ को मणि के संदर्भ में सूचित किया था पर शोकमग्न संघ विस्मृत कर गया तथा मणि किसी और के हाथ में पहुँच गयी। आपका स्वर्गधाम दिल्ली महरौली (बड़ी दादावाड़ी) के नाम से सुप्रसिद्ध है। (7)श्री जिनपतिसूरि - खरतरगच्छ के प्रभावक व विद्वद्वर्य आचार्यों की श्रेणी में प्रतिष्ठित जिनपतिसूरि ने - *-*-*-*-*-- * 257 अपने जीवन में तर्क, ज्ञान एवं प्रज्ञा के महाबल पर छत्तीस महावादियों को परास्त किया था, अतः षत्रिंशत्वादि विजेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। जिनपति सूरिवर ने पंचलिंगी प्रकरण वृत्ति, संघपट्टक वृत्ति इत्यादि ग्रंथों का सर्जन किया। (8)दादा श्री जिनकुशलसूरि - संकटहरण एवं कुशलकरण दादा श्री जिनकुशलसूरि शासन के वे चमकते कोहिनूर है, जिन्होंने जीवनपरिवर्तन की लहर चलायी। व्यसनों में डूबे पचास हजार अजैन परिवारों ने आपकी प्रेरणा से जैनधर्म स्वीकार किया। आपके सेवक काला एवं गौरा भैरव आज भी भक्तों के विघ्न हरने में तत्पर है। देराउर, जो आज पाकिस्तान में है, वहाँ आपका स्वर्गवास हुआ था। चतुर्दशी को बोली जाने वाली 'दें दें कि धपमप' स्तुति आपके द्वारा ही रचित है। (9)श्री जिनप्रभसूरि - अनेक सिद्धियों के धारक जिनप्रभसूरि का प्रभाव दिदिगन्त में व्याप्त था। सम्राट मुहम्मद तुगलक आपकी साधना * * **
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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