________________ खरतरगच्छ का स्वर्णिम इतिहास प्र.599. वर्तमान में जैन धर्म में कितनी में लोंकाशाह से। शाखाएँ प्रचलित हैं? 5. पार्श्वचन्द्रगच्छ का-वि.सं. 1575 में उ. मुख्यतः दो शाखाएँ प्रचलित हैं पार्श्वचन्द्रसूरि से। (1) श्वेताम्बर(2) दिगम्बर 6. तेरापंथ का-वि.सं. 1816 में (1)श्वेताम्बर - जो श्वेत वस्त्र धारण ___ आचार्य भिक्षु से। करते हैं। इसमें भी मुख्य दो भेद 7. त्रिस्तुतिक मत का - वि.सं. 1925 में राजेन्द्रसूरि से। . .. (i) मंदिर-मूर्तिपूजक - इसमें प्र.601.खरतरगच्छ का प्रारंभिक काल वर्तमान में कुल पांच संप्रदाय बताओ। . हैं-खरतरगच्छ, आंचलगच्छ, उ. यद्यपि परमात्मा महावीर का शासन तपागच्छ, पार्श्वचन्द्रगच्छ और अद्यावधि पर्यन्त अविच्छिन्न रूप से त्रिस्तुतिक गच्छ। चल रहा है तथापि मध्यकाल में यति (ii) अमूर्तिपूजक - स्थानकवासी परम्परा चली, जिसमें जिनाज्ञा के और तेरापंथी। विपरीत साधुजन पैसा रखते, छत्र (2)दिगम्बर- ये वस्त्र रहित होते हैंतथा धारण करते, ताम्बुल चबाते, मन्दिरों स्त्री-मुक्ति का निषेध करते हैं। में रहते। प्र.600.श्वेताम्बरीय सम्प्रदायों का उद्भव 11वीं सदी का काल भी यतियों की कब हुआ? बहुलता से परिपूर्ण था। आचार्य उ. 1. खरतरगच्छ का - वि.सं.1075 में बुद्धिसागरसूरि एवं श्री जिनेश्वरसूरि जिनेश्वरसूरि से। ने जिनोक्त तत्त्व को समझकर यति 2 आंचलगच्छ का - वि.सं. 1169 में परम्परा का त्याग किया और आचार्य आर्यरक्षितसूरि से। वर्धमानसूरि के शिष्य बने। 3. तपागच्छ का - वि.सं. 1285 में एक बार जब वे पाटण में आये तब जगच्चन्द्रसूरि से। जिनेश्वरसूरि और यतिप्रमुख 4. स्थानकवासी का -वि.सं. 1531 सुराचार्य के मध्य पंचासरा पार्श्वनाथ **************** 254 ****************