________________ 9. हरिभद्रसूरि- ये थे तो अहंकारी ब्राह्मण परन्तु याकिनी महत्तरा से प्रतिबुद्ध होकर जैन प्रव्रज्या अंगीकार की / संस्कृतज्ञ, परम विद्वान हरिभद्रसूरि ने 1444 ग्रंथों की रचना की। 10.आचार्य शीलांक- संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् शीलांकाचार्य ने नौ अंगों पर टीकाएँ लिखी थी परन्तु सम्प्रति आचारांग एवं सूत्रकृतांग की ही वृत्तियाँ उपलब्ध हैं।। 11.वादिवेताल शान्तिसूरि- ये राजा भोज की सभा में चौरासी वादियों को पराजित करने से वादिवेताल' कहलाये। उत्तराध्ययन वृत्ति, जीव विचार प्रकरण आदि ग्रंथों की रचना की। 12.आचार्य मलयगिरि- प्रचण्ड प्रतिभा के धनी मलयगिरि जैनागम, दर्शन, सिद्धांत, गणित आदि अनेक विषयों में परम प्रवीण थे। आपने विपुल परिमाण में साहित्य रचना की। 13.सिद्धसेन दिवाकर- कल्याण मंदिर स्तुति से शिवलिंग के गर्भ में स्थित पार्श्वनाथ की अतिशय युक्त प्रतिमा प्रकट करके उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य को प्रतिबोध दिया। 14.हेमचन्द्राचार्य- बेजोड़ प्रतिभा थी आपकी। हर विषय के पारगामी, कलिकाल सर्वज्ञ' नाम से प्रसिद्ध हेमचन्द्राचार्य ने साढ़े तीन करोड़ श्लोकों की रचना कर साहित्य जगत् को समृद्ध किया। कुमारपाल सम्राट् आपसे अत्यन्त प्रभावित थे। 15.यशोविजयोपाध्याय- संस्कृतन्याय के प्रकाण्ड विद्वान् यशोविजयजी ने न्याय विषयक ग्रंथों का ही आलेखन नहीं किया अपितु संस्कृत में भी अनेक मौलिक ग्रन्थ रचे। आपकी काव्य प्रतिभा अद्भुत थी। आप नव्य न्याय प्रणेता के रूप में प्रसिद्ध है। जिनेश्वरसूरि, नवांगी वृत्तिकार अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि आदि शासन प्रभावक आचार्यों का वर्णन खरतरगच्छ के इतिहास से जानने योग्य है। **************** 253 ****** * *